राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण हेतु उत्तर प्रदेश सरकार ने 13 जून 2014 को ‘पीलीभीत’ को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया. यह दर्जा ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ (एनटीसीए) के अनुमोदन के बाद दी गई. उत्तर प्रदेश में यह तीसरा और देश में 45वां टाइगर रिजर्व होगा.
‘पीलीभीत’ को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद अब बाघों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से मदद मिलेगी. इसके साथ ही साथ बाघों के लिए नुकसानदेह कई तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकेगा.
भारत-नेपाल सीमा से लगे ‘पीलीभीत’ टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 73024.98 हेक्टेयर है, जिसमें से 60279.8 हेक्टेयर ‘कोर एरिया’ (मुख्य क्षेत्र) और 12745.18 हेक्टेयर ‘बफर जोन’ (बाह्य क्षेत्र) है. उत्तर प्रदेश में वर्ष 2010 में हुई बाघों की गणना में 118 बाघ पाए गए थे, जिनमें से 30 पीलीभीत के जंगल में मिले. पीलीभीत में साल के घने जंगल पाए जाते हैं, जिनके बीच घास के मैदान, पोखर और तालाब हैं. पीलीभीत के वन क्षेत्र में बाघों के अलावा बारासिंघा, बंगाल फ्लोरिकन, हॉग डियर, तेंदुआ सरीखे संकटग्रस्त और लुप्तप्राय जीव पाए जाते हैं.पीलीभीत में टाइगर रिजर्व बनने पर तराई (पश्चिम में पीलीभीत से लेकर पूर्व में बलरामपुर तक तराई के जिले) में बाघों के संरक्षण और उनकी वंशवृद्धि को बढ़ावा मिलेगा.
पृष्ठभूमि
टाइगर रिजर्व बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पीलीभीत के संरक्षित वन क्षेत्र को फरवरी 2014 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा-18 के तहत वन्यजीव विहार घोषित किया था. इसके बाद सरकार ने पीलीभीत को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को भेजा. प्रस्ताव को एनटीसीए की अनुमति मिलने के बाद सरकार ने भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 38(वी) के तहत इसे टाइगर रिजर्व घोषित करते हुए इसकी अधिसूचना जारी की.
विदित हो कि उत्तर प्रदेश के 'दुधवा' को वर्ष 1987 में प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था. वर्ष 2012 में बिजनौर जिले के ‘अमानगढ़’ को दूसरा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया.
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