उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों को गैर-दलितों को जमीन बेचने संबंधी प्रस्ताव को 4 अगस्त 2015 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई. इसके तहत उत्तर प्रदेश में अब गैर-दलितों के लिए दलितों की जमीन खरीदने की राह आसान हो जाएगी.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इन सभी मामलों से जुड़े विधेयकों के प्रस्तावों को मंजूरी दी गयी. ये विधेयक 14 अगस्त 2015 से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश होंगे. विधानमण्डल से मंजूरी के बाद सरकार इस सम्बंध में शासनादेश जारी करेगी.
राज्य सरकार ने इसके लिए जमींदारी विनाश एवं भूमि अधिनियम 1950 तथा उ.प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 1952 में संशोधन के प्रस्तावों को कैबिनेट से मंजूरी दिलाई. इसके साथ ही अब उन गांवों में जमीनों की वरासत और दाखिल खारिज हो सकेंगे, जहां चकबंदी चल रही है.
कैबिनेट ने उप्र जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 157 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी. इसके साथ ही उप्र जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 1952 के प्रावधानों को सरल बनाने के उद्देश्य से धारा 157 (क) के तहत अनुसूचित जातियों की भूमि की बिक्री की प्रक्रिया पर प्रतिबंध (1) धारा 153 से 157 में संशोधन किये गये.
विदित हो कि राज्य कैबिनेट के इस फैसले के अनुरूप अब राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) अपनी हक वाली जमीन को गैरदलितों को आसानी से बेच सकेंगे. इसके लिए उन्हें जिलाधिकारी की अनुमति जरूरी होगी, मगर भूमिधारी दलित के लिए न्यूनतम 1.26 हेक्टेअर भूमि शेष रहने की बाध्यता खत्म होगी. पूर्व अधिनियम के मुताबिक भूमिधर दलितों को अपनी जमीन गैर दलित को बेचने के लिए डीएम की पूर्व अनुमति जरूरी थी. लेकिन इसके लिए प्रतिबंध यह है कि डीएम ऐसी कोई स्वीकृति तब तक नहीं दे सकता, जबकि जहां इस धारा के तहत प्रार्थना पत्र देने की तारीख पर उ.प्र. में सम्बंधित दलित की धारित भूमि 1.26 हेक्टेअर से कम है. अथवा जहां उप्र में इस प्रकार धारित करने वाले व्यक्ति की जमीन के अंतरण करने की तारीख के बाद उसके पास 1.26 हेक्टेअर से कम भूमि रह जाएगी.
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