कंपनी विधेयक-2012 राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित

Aug 9, 2013, 15:52 IST

कंपनी विधेयक-2012 राज्यसभा में पारित. इसका उद्देश्य विकास की गति को बल प्रदान करना तथा कार्पोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है.

राज्यसभा ने 8 अगस्त 2013 को कंपनी विधेयक-2012 को ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा ने इस विधेयक को दिसंबर-2012 में ही मंजूरी प्रदान की थी. इसके बाद यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा. यह विधेयक 1956 के कंपनी कानून का स्थान लेगा.
   
विधेयक का उद्देश्य
इस विधेयक का उद्देश्य देश में निगमित प्रशासन में सुधार लाना, विकास की गति को बल प्रदान करना तथा कार्पोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है.

विधेयक से सम्बंधित तथ्य
इस विधेयक में कर्मचारियों और निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखने के प्रावधान हैं. इससे प्रमोटर और प्रबंधन के बीच बेहतर तालमेल और समन्वय बनेगा.

कंपनी मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि नया कंपनी कानून उद्योगों के विकास का रास्ता खोलेगा. इसमें कंपनियों के कामकाज में पारदर्शिता बनाए रखने पर जोर दिया गया है. इससे कंपनियों में सेल्फ रिपोर्टिग और डिस्क्लोजर को बढ़ावा मिलेगा.
 
इस विधेयक में कंपनियों को गत तीन साल के औसत मुनाफे का कम से कम दो फीसद कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) गतिविधियों पर खर्च करने का प्रावधान है. कंपनयिों को सीएसआर के बारे में अपनी वेबसाइट पर जानकारी देनी होगी. इसके साथ ही उन्हें खर्च का ब्यौरा भी देना होगा. कंपनियों पर सामाजिक कल्याण के कार्यो को बाध्यता के बजाय स्वैच्छिक बनाया गया है.
 
इस विधेयक को दो बार स्थायी समिति में भेजा गया. समिति की 193 सिफारिशें में से 97 प्रतिशत को स्वीकार कर लिया गया.

इससे कंपनियों के लिए अपने बोर्ड में एक तिहाई स्वतंत्र निदेशकों को शामिल करने की बाध्यता भी होगी. साथ ही प्रत्येक कंपनी को बोर्ड में कम से कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति करनी होगी. कंपनियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि दलित, गरीब सहित हर वर्ग की महिलाओं को बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिले.  
 
कॉरपोरेट गवर्नेस से जुड़े मामलों में और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए इसमें ठोस उपाय किए गए हैं. साथ ही कंपनियों से जुड़े मामलों की जल्द सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान भी किया गया है.
    
इस विधेयक के अनुसार अब एक ऑडिटर बीस से अधिक कंपनियों के खातों की जांच नहीं कर पाएगा. ऑडिटरों की आपराधिक जवाबदेही भी तय की गई है.  सचिन पायलट ने कहा कि कंपनियों को एक निश्चित समय के बाद अपने अंकेक्षक बदलने होंगे ताकि उनके कामकाज की निष्पक्ष तरीके से जांच हो सके.    

उन्होंने कहा कि कंपनियां को बंद करने के प्रावधानों को भी सरल बनाया गया है. इसके साथ ही विधेयक में धोखाधड़ी को भी परिभाषित किया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार का जोर इस बात पर है गड़बडी होने के पहले ही उसे पकड़ा जाए, न कि गडबड़ी हो जाने के बाद कार्रवाई की जाए. उन्होंने कहा कि नियमों की संख्या के स्थान पर उनके कार्यान्वयन पर जोर दिया गया है.

पायलट ने कहा कि ब्लूचिप कंपनियों के अलावा लघु एवं मध्यम आकार की कंपनियों की ओर भी ध्यान दिया गया है.
    
विधेयक में पारदर्शी कार्पोरेट गवर्नेंस तथा गड़बड़ियों को दूर करने के मकसद से विभिन्न मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित किए जाने का भी प्रावधान किया गया है.  

कंपनी मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि पहले की तुलना में अब स्थिति काफी बदल गयी है और भारत में कंपनियों की संख्या 10 लाख से अधिक हो गयी है. इसके साथ की बदलते दौर में कई नयी चुनौतियां भी सामने आयी हैं. उन्होंने कहा कि एक ओर भारतीय कंपनियां विदेश जा रही हैं वहीं विदेशी कंपनियां भारत आ रही हैं. इस विधेयक में इसका भी ख्याल रखा गया है.  
 
कंपनी मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि यह काफी बड़ा विधेयक है और इसे लंबे समय में तैयार किया गया तथा इसे मौजूदा रूप देने में राजनीतिक दलों, शेयरधारकों, चैंबरों सहित हर पक्ष से विचार विमर्श कर उनकी बातों को शामिल किया गया है.    

प्रभाव  
नए कानून से कार्पोरेट जगत की विभिन्न चुनौतियों का हल निकल सकेगा और देश में विकास की दर तथा निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा.

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