केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 13 जुलाई 2015 को ‘गगन’ प्रणाली प्रारंभ की. केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री पी. अशोक गजपति राजू ने विमानों की लैंडिंग और टेकआफ को सटीक और आसान बनाने वाली स्वदेशी ‘गगन’ प्रणाली का औपचारिक उद्घाटन किया.
इसरो तथा एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से विकसित यह प्रणाली जमीनी उपकरणों की मदद के बिना विमान को हवाई पट्टी पर सकुशल उतारने में मदद करती है. भविष्य में ट्रेनों, बसों, और समुद्री जहाजों के सुरक्षित संचालन के अलावा कृषि, रक्षा व सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में भी घटनास्थल के सटीक आकलन में भी यह प्रणाली मददगार साबित होगी.
‘गगन’ प्रणाली से संबंधित मुख्य तथ्य:
‘गगन’ का पूरा नाम जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेवीगेशन है. यह विमानों को जमीन से ऊपर ले जाने या ऊपर से नीचे लाने में ऊंचाई का सटीक आकलन करने में पायलट के लिए बेहद मददगार है. इस तरह की ऊर्ध्व दिशानिर्देशन में सक्षम प्रणालियां अभी तक केवल अमेरिका के पास ‘वास’ के रूप में तथा यूरोप के पास ‘इगनोस’ के रूप में हैं. गगन जीपीएस सेवा का विस्तार पूरे देश में और बंगाल की खाड़ी, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक करेगा. इसके लॉन्च के साथ भारत उन देशों (अमेरिका, यूरोपीय संघ व जापान) के क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास इसी तरह की प्रणाली है.
गगन की तकनीक की वजह से विमानों से लगातार संपर्क बनाए रखने के लिए टावर सिस्टम के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा. चूंकि विमान से संबंधित सारी जानकारी उपग्रह के जरिए उपलब्ध होगी, उससे न सिर्फ विमान पायलट बल्कि एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों पर भी काम का दबाव कम होगा. साधारण भाषा में कहा जा सकता है कि पहले विमानों के साथ एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावरों की मदद से संपर्क में रहते थे लेकिन अब इस नए सिस्टम से उपग्रह के जरिए विमानों के बारे में सटीक जानकारी मिलती रहेगी. यह भी पता चलेगा कि विमान की गति और देशांतर क्या है और वह कितनी ऊंचाई पर है.
विदित हो कि गगन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) ने संयुक्त रूप से 774 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया है. यह एविएशन सेक्टर को बेरोकटोक नेविगेशन उपलब्ध कराएगा. सिविल एविएशन विभाग के अनुसार, गगन आने के बाद देश के 50 चालू हवाईअड्डों को तत्काल लाभ होगा. वहीं सभी दक्षेस देश इस प्रणाली का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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