जेल में कैदियों की अधिक संख्या वहां हो रहे अमानवीय व्यवहारों के मुख्य समस्याओं में से एक है.वर्ष 2007 में जेल की कुल आबादी के लगभग 67 प्रतिशत ऐसे कैदियों की संख्या थी जिनके मामले अभी विचाराधीन थे,जो कि कहीं न कहीं जेल में बढ़ते अमानवीय व्यवहार का एक मुख्य कारण है.
भारतीय जेलों में कैदियों की स्थिति में सुधार लाने हेतु सर्वप्रथम जेलों में उनकी बढ़ती संख्या को कम करना निहायत ही जरुरी है. अर्थात विचाराधीन मामलों की संख्या कम की जानी चाहिए.
इस सन्दर्भ में सामन्य मामलों के तहत एक यादगार फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर विचाराधीन कैदियों की रिहाई के संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश दिया है.
1999 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने सभी जेलों के राज्य महानिरीक्षक (IGS) को अपने उच्च न्यायालयों और राज्य विधिक सहायता अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर समुचित उपाय करने के दिशा निर्देश दिए.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से सभी मजिस्ट्रेटों एवं सत्र न्यायाधीशों द्वारा आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने के लिए अनुरोध किया, जिसे पुनः 2003 में भी दुहराया गया.
वर्ष 2002-03 में केंद्र सरकार ने जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए नई जेलों के निर्माण हेतु कारागार योजना के आधुनिकीकरण का शुभारंभ किया.
इसके अलावा फास्ट ट्रैक अदालतों के माध्यम से अधिकतर जेलों में आबादी कम करने के क्रम में कारगर कदम उठाए गए.
लेकिन इन सब के वावजूद जब तक लंबित पड़े मामलों का निपटारा कम से कम समय में करने का प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक इस समस्या का कोई समुचित समाधान निकालना मुश्किल है. इसके लिए यह जरुरी है कि विचाराधीन मामलों की सुनवाई तेजी से की जाय तथा इस सन्दर्भ में पुलिस तुरंत गवाह उपस्थित करने का प्रयास करे.
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