गुजराती साहित्यकार रघुवीर चौधरी को वर्ष 2015 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई. रघुवीर चौधरी का चयन प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने किया.
चौधरी इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित होने वाले चौथे गुजराती साहित्यकार हैं . चौधरी से पहले गुजराती में यह पुरस्कार 1967 में उमा शंकर जोशी, 1985 में पन्नालाल पटेल और वर्ष 2001 में राजेंद्र शाह को दिया गया था.
रघुवीर को वर्ष 2016 के एक समारोह में 51वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. पुरस्कार के रूप में उन्हेंर 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की प्रतिमा तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा.
डॉ. रघुवीर चौधरी का नाम हिंदी में प्रामाणिक और विशिष्ट लेखन करने वाले एक महत्वपूर्ण भारतीय लेखक के रूप में स्थापित है.
डॉ. रघुवीर चौधरी के बारे में
5 दिसम्बर, 1938 को गांधीनगर के बापूपुरा गांव में जन्मे डॉ. चौधरी गुजरात विवि में हिंदी विभाग के प्रोफेसर हैं.
डॉ. चौधरी कई कविता, उपन्यांस, कथा, नाटक लिखे हैं.
उन्होंने अब तक 80 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें अमृता, सहवास, अन्तर्वास, पूर्वरंग, वेणु वात्सल (उपन्यास), तमाशा और वृक्ष पतनमा (कविता संग्रह) 'सोमतीर्थ', 'रुद्रमहालय' प्रमुख हैं.
डॉ. चौधरी को हिंदी की सेवा के लिए 'सौहार्द्र सम्मान', 'दर्शक सम्माथन' और 'गौरव पुरस्कार' जैसे पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं.
उन्होंने कविता, नाटक जैसी अन्य साहित्यिक विधाओं में भी महत्वपूर्ण लेखन किया. वे कई पत्र-पत्रिकाओं से स्तंभकार के रूप में भी जुड़े रहे हैं.
वर्ष 1977 में उनकी कृति ‘उप्रवास कथात्रयी' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबंधित मुख्य तथ्य
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘भारतीय ज्ञानपीठ न्यास’ द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाता है.
यह पुरस्कार भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में से किसी भाषा के लेखक को प्रदान किया जाता है.
वर्ष 2011 से पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपए नकद, शॉल व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है. इसके पहले इस सम्मान के तहत 7 लाख रुपए नकद दिए जाते थे.
वर्ष 2011 में भारतीय ज्ञानपीठ ने पुरस्कार राशि को 7 से बढ़ाकर 11 लाख रुपए किए जाने का निर्णय लिया था.
वर्ष 1965 में 1 लाख रुपए की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए, इस पुरस्कार को वर्ष 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया.
प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था.
वर्ष 1982 तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिए दिया जाता था. लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिए दिया जाने लगा.
विदित हो कि 50वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े को 10 नवंबर 2014 को प्रदान किया गया. इस पुरस्कार को हासिल करने वाले वे हिन्दी के 10वें साहित्यकार थे. इससे पूर्व यह पुरस्कार सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को दिया जा चुका है.
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