इंडिगो (IndIGO) - इंडियाज ग्रैविटेशनल वेभ ऑब्जरवेटरी इनीसिएटिव को संक्षिप्त में इंडिगो कहा जाता है.
इंडिगो क्यों चर्चित रहा ?
गुरुत्वाकर्षण– लहरों का पता लगाने वाली भारतीय पहल फरवरी 2016 के दूसरे सप्ताह में सुर्खियों में रही क्योंकि अंतरराष्ट्रीय भौतिकविदों ने 1916 मे अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा की गई भविष्यवाणी के बाद पहली बार गुरुत्वाकर्षण की लहरों का पता लगाने की घोषणा की. इन लहरों का पता अमेरिका के लिविंगस्टन, लुसियाना और हैनफोर्ड, वाशिंगटन स्थित तीन LIGO (लीगो) डिटेक्टरों का उपयोग कर लगाया जाएगा.
इंडिगो क्या है?
इंडिगो खगोलविज्ञान में बहु– संस्थागत भारतीय राष्ट्रीय परियोजना के लिए उचित सैद्धांतिक और गणना सहयोग के साथ उन्नत प्रायोगिक सुविधाएं स्थापित करने की एक पहल है. स्वतंत्र भारत में वैश्विक भागीदारों की मदद से इसे बड़े पैमाने पर शुरु किए जाने वाले वैज्ञानिक परियोजनाओं में से एक माना जाता है.
LIGO– इंडिया क्या है?
LIGO– इंडिया IndIGO पहल के अधीन प्रमुख परियोजना है. लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल– वेव – ऑब्जरवेट्री या LIGO परियोजना तीन गुरुत्वाकर्षण– तरंग (जीडब्ल्यू) डिटेक्टरों का संचालन कर रहा है. इनमें से दो उत्तर पश्चिम अमेरिका में स्थित वाशिंगटन के हैनफोर्ड में है जबकि एक दक्षिण– पूर्व अमेरिका के लुसियाना के लिविंगस्टन में.
फिलहाल इन वेधशालाओं को इनके उन्नत विन्यास ( एडवांस्ड LIGO) से उन्नत बनाया जा रहा है. प्रस्तावित LIGO– इंडिया परियोजना का उद्देश्य हैन्फोर्ड से एक उन्नत LIGO– डिटेक्टर को भारत लाना है.
LIGO– इंडिया परियोजना की कल्पना LIGO प्रयोगशाला और IndIGO संघ के तीन प्रमुख संस्थानों – इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च (आईपीआर), गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए), पुणे और राजा रमण सेंटर फॉर एडवानस्ड टेक्नोलॉजी( आरआरसीएटी) इंदौर के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तौर पर की गई है.
LIGO–प्रयोगशाला पूर्ण डिजाइन और डिटेक्टर के सभी मुख्य घटक मुहैया कराएगा. भारतीय वैज्ञानिक भारत में उपयुक्त स्थान पर डिटेक्टर लगाने के लिए जगह मुहैया कराएंगे और इसे चालू करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होगी.
प्रस्तावित वेधशाला का संचालन IndIGO और LIGO–प्रयोगशाला मिल कर करेंगें और अमेरिका के LIGO डिटेक्टरों एवं वर्गो इंटरफेरोमीटर– इटली, पीसा के निकट स्थित LIGO के समान इंटरफेरोमीटर के साथ एक ही नेटवर्क स्थापित करेंगे.
LIGO– इंडिया का डिजाइन कैसे तैयार किया जाएगा ?
प्रस्तावित डिक्टेटर 4 किमी लंबाई वाले बढ़ाए गए फैब्री– पेरॉट आर्म्स के साथ एक माइकल्सन इंटरफेरोमीटर होगा और इसका उद्देश्य 30 से 800 हर्ट्ज की आवृत्ति रेंज में आधा, 10– 23 हर्ट्ज जितनी छोटी आर्म– लेंथ में हुए अंतर का पता लगाना है.
इसका डिजाइन अमेरिका में काम कर रहे उन्नत LIGO डिक्टेटरों के जैसा ही होगा.
इसके वैज्ञानिक लाभ क्या हैं?
• LIGO– इंडिया के वैज्ञानिक लाभ बहुत अधिक हैं. मौजूदा नेटवर्क में एक और नया डिटेक्टर जोड़ने से संभावित घटनाओं की दरों को बढ़ाएगा और संवेदनशीलता, आकाश कवरेज और नेटवर्क के ड्यूटी चक्र को बढ़ाकर नए स्रोतों से पता लगाने के आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा.
• लेकिन LIGO– इंडिया में अभूतपूर्व सुधार आसमान में जीडब्ल्यू स्रोतों के स्थानीयकरण की क्षमता के साथ आएगा. जीडब्ल्यू स्रोतों के आकाशीय– स्थान की गणना भौगोलिक रूप से अलग किए गए डिटेक्टरों ( छिद्र विश्लेषण) से मिले आंकड़ों के संयोजन द्वारा की जाएगी.
• भारत में एक नया डिटेक्टर लाने से मौजूदा LIGO– वर्गो डिटेक्टर सरणी से भौगोलिक रूप से अच्छी तरह अलग हो चुके, स्रोत स्थानीयकरण सटीकताओं ( 5 से 10 गुना) में नाटकीय रूप से सुधार लाएगा, इसलिए हमें जीडब्ल्यू पर्यवेक्षणों को उत्कृष्ट खगोलीय उपकरण के तौर पर उपयोग करने में सक्षम बनाएगा.
भारतीय विज्ञान, उद्योग और शिक्षा पर इसका क्या प्रभाव होगा?
भारती विज्ञान पर प्रभाव
• प्रस्तावित LIGO– इंडिया परियोजना जीडब्ल्यू खगोल विज्ञान में उभरते हुए अनुसंधान सीमा में भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को प्रमुखता दिलाने में मदद करेगा.
• LIGO– इंडिया जैसी प्रमुख पहल भारत में सीमांत अनुसंधानों और विकास परियोजनाओं को प्रेरित करेगा. प्रयोग की प्रकृति आंतरिक रूप से बहुविषयक है.
• यह प्रकाशविज्ञान (ऑप्टिक्स), लेजर, गुरुत्वाकर्ण भौतिकी, खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी, ब्रह्मांड विज्ञान, अभिकल्पनात्मक विज्ञान (कम्प्यूटेशनल साइंस), गणित औऱ इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को एक साथ लाएगा.
• बहु–घटक खगोल विज्ञान की क्षमता को पूरी तरह से समझने के लिए LIGO– इंडिया परियोजना भारत की कई खगोल परियोजनाओं में शामिल होगा. संभावित सहयोगियों में एस्ट्रोसैट परियोजना, भारत की न्यूट्रिनो वेधशाला में भविष्य में किए जाने वाले उन्नयन और ऑप्टिकल/ रेडियो टेलिस्कोप शामिल हैं.
उद्योग पर प्रभाव
परियोजना की उच्च इंजीनियरिंग जरूरतें (जैसे दुनिया की सबसे बड़ी अल्ट्रा– हाई वैकुम सुविधा) भारतीय उद्योगों के लिए शैक्षणिक अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से अभूतपूर्व अवसर प्रदान करेगा.
LIGO– परियोजना ने अमेरिका और यूरोप में प्रमुख उद्योग– शैक्षणिक अनुसंधान भागीदारियों में मदद की है और कई महत्वपूर्ण तकनीकि उपउत्पादों का उत्पादन किया है. LIGO– इंडिया भी भारतीय उद्योग के लिए ऐसे ही अवसर मुहैया कराएगा.
शिक्षा और लोगों तक पहुंच
• भारत में एक अत्याधुनिक परियोजना रुचि पर स्थानीय फोकस का काम कर सकता है और छात्रों एवं युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित कर सकता है.
• LIGO– इंडिया परियोजना में उच्च प्रौद्योगिकी उपकरण शामिल हैं और इसका नाटकीय पैमाना रुचि को प्रेरित करेगा और युवा छात्रों को प्रयोगात्मक भौतिकी एवं इंजीनियरिंग भौतिकी को करिअर विकल्प के तौर पर चुनने के लिए प्रोत्साहित करेगा.
• भौतिकी तक 'बहु– स्पेक्ट्रल' पहुंच जैसा कि इसने अन्य देशों में किया है, इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली और युवा अनुसंधानकर्ताओं और छात्रों को आकर्षित एवं प्रेरित करेगा.
• यह वेधशाला इस पैमाने, अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता और प्रौद्योगिकी नवाचार वाला भारत में उपलब्ध बहुत कम अनुसंधान सुविधाओं में से एक होगा जहां आम जनता और छात्र जा सकते हैं.
IndIGO की वर्तमान स्थिति क्या है?
वर्ष 2009 से IndIGO गुरुत्वाकर्षीय तरंग खोगल वित्रान के लिए एशिया– प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण गुरुत्वाकर्षण– तरंग वेधशाला को साकार करने में भारतीय भागीदारी पर रोडमैप और चरणबद्ध रणनीति तैयार करने में लगा है.
अक्टूबर 2011 में LIGO– इंडिया को तत्कालीन योजना आयोग द्वारा विचाराधीन मेगा परियोजनाओं की सूची में शामिल किया गया था.
भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला क्या है?
IndIGO कि भांति ही भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (INO) परियोजना एक अन्य मेगा परियोजना है. यह न्यूट्रिनो कहे जाने वाले अल्पकालिक कण का पता लगाने के लिए प्रस्तावित भूमिगत वेधशाला है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में इस परियोजना को मंजूरी दे दी थी. प्रयोगशाला तमिलनाडु में बनाई जाएगी. हालांकि पर्यावरण पर इसके प्रभावों को देखते हुए कार्यकर्ता समूहों के विरोध की वजह से यह परियोजना एक वर्ष से अधिक समय से रुकी पड़ी है.
गुरुत्वाकर्षण की लहरों का पता लगाने से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक
30 से भी अधिक वर्षों से शोध में लगे भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में खोज किए गए गुरुत्वाकर्षण तरंगों में काफी योगदान दिया है. इनमें से सी वी विश्वश्वरा, बालाअय्यर, आनंद सेनगुप्ता और संजीव मित्रा उल्लेखनीय हैं.
सी वी विश्वेश्वरा और बालाअय्यर आइंस्टीन के समीकरण को हल करने वाले दुनिया के पहले वैज्ञानिकों में से एक हैं. इस समीकरण को टकराने वाले ब्लैक होल कैसे दिखते हैं, कि व्याख्या करने और वे कौन सा टेल– टेल (tell-tale) संकेत देते हैं, को प्राप्त करने के लिए एक गणितीय मॉडल को हल किया था.
जबकि आनंद सेनगुप्ता ने ऐसा तरीका विकसित किया जो 3,000 किमी दूर स्थित दोनों LIGO– डिटेक्टर एक ही गुरुत्वाकर्षण तरंग को सुनिश्चित करता है. संजीब मित्रा ने विभिन्न तारों से निकलने वाले गुरुत्वाकर्षण तरंगों को अलग करने का तरीका खोजा.
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