गुलबर्ग विश्वविद्यालय के तीन शोधकर्ताओं, मुख्य शोधकर्ता दयानंद असगर, सहायक शोधकर्ता एम बी सुलोचना तथा शोधकर्ता डी एन मधुसूदन ने मेलेनिन के उत्पादन की जटिलताओं को सुलझाने में सफलता हासिल की.
वैज्ञानिकों की टीम ने एक्टिनो जीवाणु से नए सूक्ष्म जीव टायरोसिनेस द्वारा पानी में घुलनशील मेलेनिन प्राप्त की.
वर्तमान में, मेलेनिन का उपयोग कॉस्मेटिक उद्योग एवं रासायनिक उद्योगों में किया जाता है. रासायनिक योगिक से प्राप्त मेलेनिन पानी में अघुलनशील है.
तीन वैज्ञानिकों ने केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित प्रमुख अनुसंधान परियोजना के तहत शोध किया.
इन शोधकर्ताओं के निष्कर्षों को अप्रैल 2014 के बायोमेड रिसर्च इंटरनेशनल पत्रिका एवं मार्च 2014 के जर्नल ऑफ़ क्लस्टर साइंसेज ऑफ़ द स्प्रिंगर में प्रकाशित किया गया था.
मेलेनिन
मेलेनिन त्वचा के नीचे मौजूद कोशिकाओं को कहा जाता है तथा यह प्रत्येक जीवित वस्तु में पाया जाता है. इसका उत्पादन एमिनो एसिड टायरोसिन के ऑक्सीकरण द्वारा पोली मेराईज़ेशन द्वारा होता है.
इसका उपयोग बड़े पैमाने पर फार्मास्युटिकल कम्पनियों द्वारा त्वचा कैंसर, मेलेनोमा के उपचार में किया जाता है. कॉस्मेटिक उत्पादों में त्वचा सुरक्षा उत्पादों (एसपीएफ) में भी इसका बड़े पैमाने पर उपयोग होता है.
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