प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में पंजीकृत सभी घरेलू श्रमिकों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के विस्तार की मंजूरी 23 जून 2011 को प्रदान की. इस योजना से देश में लगभग 47 लाख 50 हजार घरेलू श्रमिकों को लाभ होगा. योजना के तहत देश में कहीं भी पैनल में शामिल किसी भी अस्पताल में स्मार्ट कार्ड आधारित 30000 रुपए तक के कैशलेस स्वास्थ्य बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा निधि से धन आवंटित किया जाएगा.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना पंजीकृत और 18 से 59 वर्ष की आयु के घरेलू नौकरों के लिए मान्य है. केंद्र और राज्य सरकारें इस योजना के प्रीमियम को 75:25 के अनुपात में वहन करेंगी. पूर्वोत्तर राज्यों एवं जम्मू-कश्मीर के मामले में यह अनुपात 90:10 है. यह प्रिमियम 30 हजार तक हर तरह की बीमारी को कवर करेगा. पहले से चल रही बीमारी को भी इस योजना में शामिल किया गया हैं. लाभार्थियों को इस योजना के लिए पहचान प्रमाण-पत्र नियोक्ता, आवास कल्याण एसोसिएशन, पंजीकृत मजदूर संघ या पुलिस, इन चार में से किन्हीं दो से लेना होता है. इस वर्ष दस प्रतिशत घरेलू नौकर इस योजना के दायरे में लाए जाएंगे.यह सुविधा वार्षिक आधार पर दी जानी है. इस वर्ष पहली बार 10 प्रतिशत को यह सुविधा मिलेगी. इस योजना के तहत केंद्र सरकार निम्नलिखित अनुमानित राशि वहन करेगी:-
वर्ष अनुमानित व्यय (रुपए करोड़ में)
2011-12 29.70
2012-13 74.25
2013-14 148.50
2014-15 297.00
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना स्मार्ट कार्ड आधारित कैशलेस स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा है. यह देश में 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की गई. गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे असंगठित क्षेत्र के कामगारों को प्रतिवर्ष 30000 रुपए की सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी. 31 मई 2011 तक 2 करोड़ 34 लाख से अधिक स्मार्ट कार्ड जारी किए जा चुके हैं. इस योजना में भवन एवं अन्य निर्माण कामगार (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 के तहत गठित कल्या्ण बोर्डों के साथ पंजीकृत भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक, फेरी वाले, बीड़ी मजदूर एवं पिछले वर्ष के दौरान 15 दिन से अधिक काम कर चुके महात्मा गांधी नरेगा के मजदूर शामिल हैं. शहरी क्षेत्रों में घरेलू कार्य, महिला रोजगार के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है. घरेलू श्रमिक असंगठित हैं और यह क्षेत्र अनियंत्रित एवं श्रम कानूनों से संरक्षित नहीं है. ये श्रमिक समाज के कमजोर समुदायों एवं पिछड़े क्षेत्रों से आते हैं. इनमें से ज्यादातर गरीब, कमजोर, संवेदनशील समुदाय, निरक्षर, अकुशल होते हैं और शहरी श्रम बाजार को नहीं समझ पाते.
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