डॉ. हेमंत थत्ते ने 21-रासायनों का एक घोल विकसित किया. जिसका नाम एसओएमएएच (SOMAH) नामक रखा गया. इसकी जानकारी 20 फ़रवरी 2014 को दी गई.
यह घोल प्रत्यारोपण से पहले एक सप्ताह तक के लिए एक दान अंग की रक्षा कर सकता है. संस्कृत में इस घोल का मतलब अमरत्व का अमृत है.
सूअरों पर किए गए अध्ययन में, घोल को एक सप्ताह तक के लिए ऊतकों के संरक्षण में प्रभावी पाया गया है. सूअरों पर अध्ययन से पाया गया है कि एसओएमएएच घोल में 24 घंटे तक डूबे दिलों को दवाओं के बिना पुनर्जीवित किया जा सकता है जबकि अन्य घोल केवल चार घंटे की अनुमति देते हैं. एसओएमएएच घोल की मदद से गिरावट की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है. इसलिए, इसे लंबी दूरी के परिवहन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
एसओएमएएच का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे कमरे के तापमान पर इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर एक अंग की ऊर्जा स्थिति पुनर्प्राप्त करते समय बरकार रखी जाए तो प्रत्यारोपित अंग की स्थिति बेहतर होगी. यह जल्दी ही लय में मिल सकती है.
वर्तमान में, दिल और फेफड़ों को एक मस्तिष्क मृत दाता से 4-6 घंटे के भीतर, जिगर को आठ घंटे और गुर्दे को 24 घंटे से कुछ ज्यादा के भीतर प्रत्यारोपित किया जा सकता है. इसके अलावा, उपलब्ध अंगों के प्रत्यारोपण के लिए लंबी दूरी तक नहीं पहुँचाया जा सकता. इसे स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध कराया जा सकता है.
डॉ. हेमंत थत्ते हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक वरिष्ठ हृदय सर्जन है, वे दादर में पैदा हुए और पुणे में उनका पालन पोषण हुआ. डॉ. थत्ते ने हार्वर्ड में दो दशकों से अधिक समय के लिए काम किया है. करीब एक दशक पहले उन्होंने गाला कहे जाने वाले एक घोल को संश्लेषित किया जिसे दिल की सर्जरी के दौरान रक्त वाहिकाओं की रक्षा के लिए बाईपास चैनल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. गाला अमेरिका और फ्रांस भर में उपयोग में है.
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