डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा यानी रुपये का अवमूल्यन रोकने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने 15 दिसंबर 2011 को अनेक उपाय किए. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए इन उपायों के तहत विदेशी संस्थागत निवेशक और रुपये का वायदा कारोबार करने वाले अन्य कारोबारी एक बार रद्द होने पर किसी सौदे को फिर से बुक नहीं कर सकेंगे.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए उपाय के तहत विदेशी संस्थागत निवेशक और रुपये का वायदा कारोबार करने वाले अन्य कारोबारी यदि अपने सौदों का निपटान अवधि समाप्त होने से पहले रोलओवर नहीं करते हैं तो इन्हें डिलीवरी लेनी होगी. एक बार सौदा रद हो जाने के बाद उसे फिर से बुक करने की इजाजत नहीं रहेगी.
भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में विदेशी मुद्रा कारोबार करने वाले बैंकों की अधिकतम सीमा में भी कटौती कर दी है. साथ ही रुपये की कीमत को नियंत्रित करने के लिए निर्यातकों व आयातकों के लिए जोखिम कवर करने की हेजिंग की सीमा को भी घटा दिया. आयातक-निर्यातक अब पिछले तीन साल के टर्नओवर के 75 के बजाय औसतन 25 प्रतिशत की ही हेजिंग कर पाएंगे.
ज्ञातव्य हो कि 15 दिसंबर 2011 को एक डॉलर की कीमत रिकॉर्ड गिरावट के साथ 54.30 रुपये के निचले स्तर तक पहुंच गई थी. जनवरी 2011 से 15 दिसंबर 2011 तक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में करीब 19 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है.
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