भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने तिमाही के मध्य में मौद्रिक नीति की समीक्षा रिपोर्ट 16 दिसंबर 2010 को जारी की. इसके तहत आरबीआई ने सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत कर दिया तथा रैपो दर और रिवर्स रैपो दर को पूर्ववत (रैपो दर 6.25 प्रतिशत और रिवर्स रैपो दर 5.25 प्रतिशत) बनाए रखा. बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात को भी पहले की तरह 6 प्रतिशत ही रहने दिया. भारतीय रिजर्व बैंक ने इसे 18 दिसंबर 2010 से लागू करने का निर्णय लिया. रिजर्व बैंक ने व्यवस्था में ज्यादा नकदी लाने के उद्देश्य से 18 दिसंबर 2010 से 24 जनवरी 2011 की अवधि में बैंकों से 48 हजार करोड़ रूपये की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करने का भी निर्णय लिया.
विदित हो कि भारतीय रिजर्व बैंक की मध्य तिमाही समीक्षा में उठाए गए ये कदम प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा व्यक्त इन अनुमानों के अनुरूप हैं. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की तंगी का अनुमान लगाया था. आरबीआई ने बैंकिंग तंत्र में नकदी की तंगी के लिए सरकार के खजाने में उपलब्ध नकदी को दोषी ठहराया.
थोकमूल्य सूचकांक पर आधारित सकल मुद्रास्फीति अक्टूबर 2010 में 8.57 प्रतिशत थी जो नवंबर 2010 में घटकर 7.48 प्रतिशत हो गई.
रैपो दर: आरबीआई द्वारा बैंकों को उधार देने की ब्याज दर को रैपो दर कहते हैं
रिवर्स रैपो दर: आरबीआई द्वारा बैंकों से उधार लेने की ब्याज दर को रिवर्स रैपो दर कहते हैं.
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