दिल्ली उच्च न्यायालय ने 20 मार्च 2015 को दवा निर्माता भारतीय कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स पर अपनी एंटी डायबिटिक दवाएं जीटा व जीटा मेट के निर्माण, मार्केटिंग और विक्रय पर रोक लगा दी. न्यायाधीश एस रविंदर भट्ट और नाइमी वजीरी की बेंच ने कहा कि कंपनी ने प्रथम दृष्टया अमेरिकी दवा कंपनी मार्क शार्प और डोहम (एमएसडी) के पेटेंट का उल्लंघन किया है. इसके साथ ही न्यायालय ने भारतीय कंपनी को एक अंडरटेकिंग देने के निर्देश दिए जो इस आदेश के साथ लागू होगा.ग्लेन मार्क की मौखिक अपील पर बेंच ने कंपनी के बाजार में पहले से ही मौजूद माल को बेचने की अनुमति दी. कंपनी ने स्पष्ट किया कि वे ऐसा माल बेच सकते हैं, जो पहले से ही बाजार में है और वितरकों -खुदरा विक्रेताओं के कब्जे में है. एमएसडी के प्रतिनिधियों को ग्लेनमार्क की निर्माण सुविधाओं के गेट पास के निरीक्षण की अनुमति दी गई ताकि यह जाना जा सके कि ऑर्डर के मुताबिक कितना स्टॉक पहले वितरित किया गया और कितना माल फैक्ट्री में बाकी है. हाईकोर्ट ने एमएसडी को अंडरटेकिंग देने के निर्देश दिए, जो नुकसान की स्थिति में लागू हो, इसके द्वारा भारतीय कंपनी को हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी. कोर्ट ने अप्रैल 2013 में एकल न्यायाधीश के निर्णय को अलग करते हुए, भारतीय कंपनी द्वारा टाइप-2 डायबिटीज के उपचार से जुड़ीं दवाओं के निर्माण और उसके विक्रय पर रोक को खारिज कर दिया.
केस के बारे में
एमएसडी ने अप्रैल 2013 में अपनी अपील में आदेश को चुनौती दी तथा ग्लेनमार्क के खिलाफ एक अंतरिम निषेधाज्ञा की मांग की. आरोप लगाया गया था कि भारतीय दवा कंपनी ने उसकी डायबिटीज दवाओं जेनूविया और जानूमेट में एक समान सॉल्ट में अपनी दवाएं बाजार में लाकर आईपीआर का उल्लंघन किया है. यूएस कंपनी ने कहा कि उसकी एंटी डायबिटिक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले सॉल्ट सिटाग्लिप्टिन का आविष्कार उसने किया और इसके अणु का भी पेटेंट कराया है. दूसरी तरफ ग्लेनमार्क का कहना था कि उन्होंने अपनी एंटी डायबिटिक दवाएं जीटा व जीटा मेट में सिटाग्लिप्टिन फॉस्फेट का इस्तेमाल किया और यूएस कंपनी का इस सॉल्ट पर अब तक कोई पेटेंट नहीं है.
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