गुजरात उच्च न्यायालय ने धर्मपरिवर्तन कर ईसाई बनने वाले व्यक्ति को उसे पूर्व में हिंदूधर्म के अंतर्गत मिलने वाले अनुसूचित जाति वर्ग का लाभ न देने का निर्णय दिया. यह निर्णय गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति जेबी पारडीवाला की पीठ ने 7 मार्च 2011 को दिया. पीठ ने निर्देश दिया कि जावेरी और उसका परिवार धर्मपरिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति के अंतर्गत मिलने वाले लाभ का अधिकारी नहीं है.
विदित हो कि धर्मपरिवर्तन की जानकारी मिलने के बाद राज्य सरकार ने निमेश को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. जवाब में निमेश ने धर्मातरण से इनकार करते हुए खुद को हिंदू धर्म के अनुसूचित जाति का बताया था. राज्य सरकार द्वारा मामले की जांच करने के बाद निमेश का जाति प्रमाणपत्र रद कर दिया गया. एकल पीठ ने भी निमेश की याचिका खारिज कर दी थी जिसके खिलाफ उसने पुर्नविचार की अपील की थी. खंडपीठ ने पांच जुलाई 1990 को निमेश द्वारा मजिस्ट्रेट को दिए गए धर्मातरण संबंधी हलफनामे को आधार बनाया,जिसमें निमेश ने बताया था कि उसने परिवार सहित ईसाई धर्म अपना लिया है और उसके परिवार को भारतीय ईसाई समुदाय में गिना जाए.
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