केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री नरेंद्र सिंग तोमर ने लोकसभा में दो श्रम सुधार विधेयक 7 अगस्त 2014 को पेश किए. ये दो विधेयक हैं– फैक्ट्री (संशोधन) विधेयक 2014 और अप्रेंटिस (संशोधन) विधेयक 2014. इन दोनों विधेयकों का उद्देश्य सरकार को राज्यों की सलाह से ऐसे नियमों को बनाने में सक्षम बनाना है जिससे कार्यस्थल पर श्रमिकों की सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके.
साथ ही वर्षों पुराने श्रम कानूनों– फैक्ट्री अधिनियम 1948 और अप्रेंटिंस अधिनियम 1961 में सुधार लाना भी है. इससे देश में रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने, श्रमिकों को भर्ती करने और काम के घंटों (दोनों में) में लचीलेपन की अनुमति लेने के साथ-साथ भारत में व्यापार करना आसान होगा.
इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने श्रम कानूनों में संशोधन को 30 जुलाई 2014 को मंजूरी दे दी थी.
फैक्ट्री (संशोधन) विधेयक, 2014 में पांच प्रस्तावित परिवर्तन हैं–
• श्रमिकों की सुरक्षा में सुधार.
• ओवरटाइम के लिए प्रावधान बढ़ाना.
• अधिनियम के उल्लंघन के लिए जुर्माना बढ़ाना.
• कुछ उद्योगों में रात की पाली में काम करने के लिए महिलाओं के लिए नियमों में ढील.
• भुगतान किए जाने वाली छुट्टी (पेड लीव) जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए कर्मचारियों को जितने दिन काम करने की जरूरत होती है, की संख्या को कम करना.
फैक्ट्री (संशोधन) विधेयक, 2014 के मुख्य प्रावधान
• यह महिलाओं को 7 बजे शाम से 6 बजे सुबह तक काम करने की अनुमति देना चाहता है बशर्ते कार्यस्थल पर उनके लिए पर्याप्त सुविधाएं हों औऱ उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की गई हो.
• यह कंपनी के मालिकों पर मामूली अपराधों के लिए दंड की बजाए उनपर मुकदमा चलाने की अनुमति देता है.
• यह राज्य सरकार की अनुमति से कुछ मामलों में ओवरटाइम– एक तिमाही में 50 घंटे की जगह 100 घंटे और सार्वजनिक हितों से जुड़े व्यवसायों में प्रति तिमाही 75 घंटे से 125 घंटे करने का प्रावधान करना चाहता है.
• यह वेतन के साथ वार्षिक छुट्टी के पात्रता मानदंड में भी बदलाव का प्रस्ताव देता है.
• लाभों पर दावा करने के लिए न्यूनतम काम करने के दिनों को यह 240 से कम कर 90 दिन करना चाहता है.
• किसी निरीक्षक द्वारा जानबूझ कर अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने पर उसे 10000 रूपयों की जगह 30000 रूपयों का जुर्माना देना होगा.
• बच्चे के दोहरे रोजगार के मामले में माता– पिता के साथ उनके लाभान्वित होने वाले व्यक्ति पर पहले लगने वाले 1000 रूपए के जुर्माने की जगह अब 3000 रूपए का जुर्माना लगाया जाए.
अप्रेंटिस (संशोधन) विधेयक 2014 की मुख्य बातें
• प्रशिक्षुओं के तौर पर गैर– इंजीनियरों की ट्रेनिंग
• रोजगार के अवसरों का विस्तार
• कर्मचारियों के गृह राज्य से प्रशिक्षुओँ की नियुक्ति
• नियोक्ताओं को भर्ती के लिए अपनी नीति बनाने की अनुमति.
• प्रशिक्षुओँ के रोजगार के दायरे के विस्तार और बतौर प्रशिक्षु और अधिक गैर– इंजीनियरों को शामिल करने का प्रस्ताव.
• दुकानों में नौकरी खोजने वाले युवाओं और छात्रों को उद्योग– संबंधित कौशल हासिल करने की अनुमति देना.
• उद्योगों को नियोक्ताओं को अपने राज्यों के अलावा अन्य राज्यों से प्रशिक्षुओं को भर्ती करने की अनुमति देना.
• हर एक नियोक्ता को अपनी कंपनी में प्रशिक्षण पूरा कर चुके प्रशिक्षुओँ की नियुक्ति के लिए खुद की नीति बनाने की अनुमति देना.
फैक्ट्री अधिनियम 1948
फैक्ट्री अधिनियम 1948 कानून कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के विनियमन से संबंधित है और इसे फैक्ट्री अधिनियम, 1934 में सन्निहित किया गया था. सितंबर 1948 में स्वीकृत होने के बाद यह अधिनियम 1949 में बतौर फैक्ट्री अधिनियम 1948 के रूप में अस्तित्व में आया.
इस अधिनियम में उसके बाद कई बार संशोधन हुआ लेकिन इसकी रूपरेखा वही बनी रही. सबसे पहले इसमें वर्ष 1954 में फैक्ट्री (संशोधन) अधिनियम, 1954 के तहत संशोधन किया गया. इसके बाद दो और संशोधन किए गए– फैक्ट्री (संशोधन) अधिनियम, 1976 और फैक्ट्री (संशोधन) अधिनियम, 1987.
अप्रेंटिस अधिनियम, 1961
वर्ष 1961 में अधिनियमित अप्रेंटिस अधिनियम 1962 से लागू हुआ. इस अधिनियम को कंपनियों में बतौर प्रशिक्षु काम करने वाले कर्मचारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया गया था. इस कानून ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के नियोक्ताओँ को अधिनियम में दिए गए जरूरी प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाया.
स्नातक इंजीनियरों को बतौर स्नातक प्रशिक्षु शामिल किए जाने के लिए अप्रेंटिस अधिनियम, 1961 में सबसे पहली बार अप्रेंटिस विधेयक, 1973 के जरिए संशोधन किया गया था. इसके बाद इस अधिनियम में अप्रेंटिस (संशोधन) विधेयक 1986 के तहत संशोधन किया गया. इसके बाद इसमें 10+2 वोकेशनल स्ट्रीम के प्रशिक्षण को "टेक्नीशियन (वोकेशनल)" प्रशिक्षु के तौर पर शामिल किया गया.
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