बांग्लादेश के मंत्रिमंडल ने भारत के साथ प्रस्तावित प्रत्यर्पण संधि को मंजूरी 7 अक्टूबर 2013 को प्रदान की. अब इसे बांग्लादेश की संसद की मंजूरी मिलना बाकी है. प्रधानमंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया. भारत का मंत्रिमंडल इस प्रत्यर्पण संधि को पहले ही मंजूरी प्रदान कर चुका है.
संधि लागू होने के बाद उल्फा के शीर्ष कमांडर अनूप चेतिया समेत बांग्लादेश की जेलों में बंद भारतीय उग्रवादियों का प्रत्यर्पण संभव होना है.
प्रत्यर्पण संधि से संबंधित मुख्य तथ्य
• यह संधि आतंकवाद से निपटने के लिहाज से तैयार की गई है और इस प्रत्यर्पण संधि में कुछ इंकार के प्रावधान भी हैं. यदि किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता हो, तो संबंधित देश प्रत्यर्पण अनुरोध को खारिज कर सकता है.
• इस समझौते के तहत सिर्फ हत्या और नरसंहार जैसे गंभीर अपराधों के आरोपों में बंद कैदियों का ही प्रत्यर्पण संभव होना है.
• प्रत्यर्पण संधि से आपराधिक गतिविधियों पर काबू पाने में दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों को मदद प्राप्त होनी है.
• समझौते के अनुसार हत्या, गैरइरादतन हत्या और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों में आरोपी व्यक्ति इस समझौते के दायरे में आने हैं और एक वर्ष से कम के कारावास की सजा वाले अपराधी इसके दायरे में नहीं आने हैं.
• राजनीतिक अपराधों के आरोपी संधि के दायरे में नहीं आने हैं.
विदित हो कि भारत और बांग्लादेश के मध्य ढाका में इस प्रत्यर्पण संधि से संबंधित समझौता 28 जनवरी 2013 को किया गया था. भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और बांग्लादेश के गृहमंत्री एन के आलमगीर ने प्रत्यर्पण संधि के समझौते पर हस्तक्षर किए थे.
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