13 मार्च 2015 को ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के संदर्भ में मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार को दिए गए निर्देश विभिन्न अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों की श्रृंखला और केंद्र सरकार द्वारा पारित नियमों में नवीनतम है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, नागरिकों को सभ्य वातावरण में रहने का अधिकार है और उन्हें शांति से रहने का अधिकार है, रात में सोने का अधिकार है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई जीवन के अधिकार गारंटी के लिए जो आवश्यक तत्व हैं, के लिए अवकाश का अधिकार है.
ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000
14 फरवरी 2000 को केंद्र सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत दी गई शक्तियों का प्रयोग कर सार्वजनिक स्थलों में विभिन्न स्रोतों द्वारा होने वाले ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को अधिनियमित किया था.
शोर नियम 2000 का नियम 5 लाउड स्पीकरों/ सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली के प्रयोग को प्रतिबंधित करता है. साल 2010 में नियम 5 में संशोधन किया गया और इसके तहत ध्वनि पैदा करने वाले उपकरणों के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. इन सभी मामलों में इन उपकरणों के इस्तेमाल करने के लिए लिखित अनुमति लेना आवश्यक है. शोर नियम, 200 के तहत जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त और पुलिस उपाधीक्षक स्तर या उससे उपर स्तर के अधिकारी अनुमति देने के अधिकारी हैं.
राज्य सरकार के पास सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सवों के अवसर पर सिमित अवधि जो कि एक कैलेंडर वर्ष में पंद्रह दिनों से अधिक नहीं हो सकती, में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल करने की इजाजत देने का अधिकार है. लेकिन ऐसी छूट 10 बजे रात से मध्य रात्रि 12 बजे के बीच नहीं दी जा सकती.
सुप्रीम कोर्ट फैसला 2005
शोर नियम 2000 के सीधे सीधे उल्लंघन ने सुप्रीम कोर्ट को 18 जुलाई 2005 को ध्वनि प्रदूषण पर ऐतिहासिक फैसला देने पर मजबूर किया.
भारत के मुख्य न्यायाधीश आर सी लाहोटी और जस्टिस अशोक भान की सुप्रीम कोर्ट खंडपीठ ने लाउडस्पीकरों और हॉर्नों के यहां तक कि निजी आवासों में भी इस्तेमाल पर व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं.
दिशानिर्देशों में पटाखों, लाउडस्पीकरों, वाहनों से उत्पन्न होने वाले शोर आदि को भी कवर किया गया है.
अदालत ने पाठ्य पुस्तकों में इस संदर्भ में शिक्षा की जरूरत पर भी जोर दिया. अदालत ने सार्वजनिक स्थानों ( आपातकालीन स्थितियों को छोड़कर) रात 10 बजे और सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
मेगाफोन और सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों का डेसिबल स्तर 10 dB (ए) इलाके के लिए आस– पास शोर मानकों के उपर, या 75 dB (ए), जो भी कम हो, से अधिक नहीं होना चाहिए.
अदालत ने ध्वनि प्रदूषण के संबंध में यह व्यापक दिशानिर्देश भारतीय संविधान की धारा 141 और 142 के तहत मिली शक्तियों के आधार पर जारी किया है.
अन्य उच्च न्यायालयों का फैसला
केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि धार्मिक संस्थानों द्वारा भक्ति गीतों का गायन नियमों के तहत किया जाना चाहिए. अल सुबह या गोधूलि बेला में या किसी भी समय भक्ति गीतों का बजाया जाना नियमों के अनुरूप होना चाहिए.
मद्रास उच्च न्यायालय ने मंदिरों में लाउडस्पीकर के प्रयोग के मामले पर विचार किया है. उच्च न्यायालय ने कहा कि संसद और राज्य विधान मंडल द्वारा अधिनियमित कानून के नियम किसी भी अन्य चीज से अधिक मायने रखते हैं और अधिकारियों द्वारा इसका ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण आतिशबाजी का उत्पादन का निषेध मान्य है कि नहीं, के मुद्दे पर निर्णय लेते समय न्यायिक सक्रियता का सिद्धांत लागू किया. न्यायिक सक्रियता अदालत को सक्रिए रहने की शक्ति प्रदान करता है और जनता के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों की रक्षा के उद्देश्य के लिए निष्क्रिए न होने की बात करता है.
ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) (संशोधन) नियम, 2010
साल 2010 में शोर नियम, 2000 का संशोधन किया गया और इसमें "पटाखे और ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले उपकरणों" शब्द को शामिल किया गया.
इसमें सार्वजनिक स्थलों को भी परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार ऐसा कोई भी स्थान जिसका उपयोग जनता करती है और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच वहां जाती है, सार्वजनिक स्थान कहलाएगा.
" सार्वजनिक संबोधन प्रणाली " के बाद "और ध्वनि उत्पादन करने वाले उपकरण " को शीर्षक में जोड़ने के लिए शोर नियम, 2000 के नियम 5 में संशोधन किया गया.
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