भारत में जमीन की रजिस्ट्री, खसरा-खतौनी की नकल जैसी भूमि प्रशासन संबंधी सेवाओं के लिए प्रतिवर्ष 70 करोड़ डॉलर की राशि घूस के रूप में दी जाती है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO: Food and Agriculture Organisation, एफएओ) और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के साझा अध्ययन में यह आंकड़े दिए गए.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा संयुक्त रूप से तैयार भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार नामक अध्ययन पत्र दिसंबर 2011 के तीसरे सप्ताह में जारी किया गया. भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार नामक अध्ययन पत्र के अनुसार कमजोर प्रशासन की वजह से जमीन से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है. इसके अनुसार जमीन संबंधी मामलों में भ्रष्टाचार भारत के विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बन कर सामने आया है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International) द्वारा यह अध्ययन 61 से अधिक देशों में किया गया. अध्ययन के अनुसार जमीन को लेकर निचले स्तर पर भ्रष्टाचार छोटी-छोटी रिश्वत के रूप में है. जबकि ऊंचे स्तर पर सरकारी ताकत और राजनीतिक ताकत के दुरुपयोग की वजह से यह घोटालों के रूप में सामने आता रहता है.
भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार नामक अध्ययन पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि जमीन संबंधी भ्रष्टाचार भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया में फैला हुआ है. उदाहरण के तौर पर केन्या में वर्ष 2011 में जमीन संबंधी हर मामले में औसतन 65 डॉलर रिश्वत के रूप में चुकाये गए. जबकि मेक्सिको में जमीन संबंधी सेवाओं के लिए बहुत ज्यादा घूस देनी पड़ती है. अध्ययन के अनुसार इस मामले में बांग्लादेश की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है.
भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार नामक अध्ययन पत्र में भ्रष्टाचार और जमीन के इस्तेमाल के बीच संबंध का भी विश्लेषण किया गया है. इसके अनुसार जमीन पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है. नए क्षेत्रों में खेती हो रही है. शहरों का विस्तार खेती की जमीन पर हो रहा है. भू-क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि बंजर हो रही है. ऐसे में बहुत कम जमीन के लिए बहुत ज्यादा लोगों के बीच मारा-मारी है.
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