भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 29 अक्टूबर 2013 को वित्त वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा जारी की. इस समीक्षा में आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करते हुए इसे 7.50 प्रतिशत से 7.75 प्रतिशत कर दिया. रेपो रेट के अनुसार ही आरबीआई बैंकों को ऋण देता है.
इसके अतिरिक्त आरबीआई ने नकदी अस्थाई सुविधा (एमएसएफ) पर लगने वाले ब्याज की दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 8.75 प्रतिशत कर दिया. एमएसएफ के माध्यम से वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं.
आरबीआई की वित्त वित्त वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा निम्नलिखित है –
• रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी, अब 7.75 प्रतिशत
• रिवर्स रेपो रेट 6.75 प्रतिशत
• एमएसएफ पर ब्याज दर 0.25 प्रतिशत घटकर 8.75 प्रतिशत
• नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) यथावत 4 प्रतिशत
• बैंकों द्वारा सीआरआर के 99 प्रतिशत तक नियमित बनाये रखने की शर्त को घटाकर 95 प्रतिशत
विदित हो कि आरबीआई ने एक दिन पूर्व ही वित्त वर्ष 2013-14 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2013) की समष्टि आर्थिक एवं मौद्रिक गतिविधियों पर अपनी रिपोर्ट जारी की थी और वर्तमान वित्त वर्ष हेतु आर्थिक वृद्धि की दर के अपने पूर्व अनुमान को 5.7 प्रतिशत से घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया था. आरबीआई ने अगले वित्त वर्ष अर्थात 2014-15 हेतु भी आर्थिक वृद्धि की दर के अनुमान को 6.5 प्रतिशत से घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया था.
आरबीआई के द्वारा अगली मध्य तिमाही समीक्षा 18 दिसंबर 2013 को की जानी है तथा वित्त वर्ष 2014-15 हेतु मौद्रिक नीति 28 जनवरी को जारी की जानी है.
विश्लेषण
रेपो रेट के बढ़ने से, यदि बैंक भी खुदरा ऋण बढ़ाते हैं तो, बैंकों के द्वारा आम नागरिकों को दिये जाने वाले ऋण पर अधिक ब्याज देना पड़ सकता है. साथ ही, पहले से ही ऋणधारकों के प्रति महीने दिये जाने वाले भुगतान (इएमआई) की राशि में बढ़ोत्तरी हो सकती है.
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