भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 दिसंबर 2014 को वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दिसंबर 2014 जारी की. भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2013-14 में भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति सहित वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट की विशेषतायें
समष्टि-वित्तीय जोखिम
• वर्तमान में कमजोर वैश्विक वृद्धि की अवधारणा से अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AEs) में मौद्रिक नीति का आसान रुख बरकरार रह सकता है.
• उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AEs) परिणामस्वरूप, कम जोखिम प्रीमियम से असुरक्षा बढ़ सकती है और बाजारों में एकाएक और तीव्र उछाल को नकारा नहीं जा सकता है.
• वर्तमान में वित्तीय जोखिम लेना आर्थिक जोखिम लेने के समान नहीं हुआ है.
• उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कम ब्याज दरों की पृष्ठभूमि में उभरते हुए बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में संविभाग प्रवाह प्रबल रहा है, जो संभावित प्रतिकूल वृद्धि पर रिवर्सल के जोखिम अथवा वित्तीय बाजार झटकों को बढ़ा रहा है और इस प्रकार सतर्कता की आवश्यकता महसूस हो रही है.
• घरेलू मोर्चे पर हाल के महीनों में वृद्धि की संभावना में सुधार, मुद्रास्फीति में कमी, बाह्य क्षेत्र में सुधार और राजनैतिक स्थिरता के सहारे समष्टि आर्थिक असुरक्षा में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है.
• बैंकिंग कारोबार में वृद्धि और प्राथमिक पूंजी बाजारों में कार्यकलाप हल्के निवेश निहितार्थ के कारण मंद रहे। कारोबार भावना में पूरा परिवर्तन इस आधार पर परिणामों पर प्रासंगिक रहा.
वित्तीय संस्थाएं: विकास और स्थिरता
• भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की वृद्धि वर्ष 2013-14 के दौरान और भी धीमी हुई. बैंकों की लाभप्रदता में चूक वाले ऋण और निस्तेज ऋण वृद्धि पर उच्चतर प्रावधानीकरण के कारण कमी आई.
• शहरी और ग्रामीण सहकारी समितियों की वित्तीय स्थिति ने प्रमुख संकेतकों में विविध प्रवृत्तियां दर्शाई। जबकि शहरी सहकारी बैंकों ने बेहतर कार्य-निष्पादन दिखाया, प्राथमिक कृषि ऋण समितियां और दीर्घावधि ग्रामीण ऋण सहकारी समितियां चिंता का विषय रही, इनकी हानि आस्ति गुणवत्ता में गिरावट के साथ और बढ़ गई.
• जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (जमाराशि स्वीकार नहीं करने वाली-प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण) के आस्ति आकार ने विस्तार दर्शाया, समीक्षावधि के दौरान आस्ति गुणवत्ता मंर गिरावट आई.
• बैंकिंग स्थिरता संकेतक दर्शाते हैं कि बैंकिंग क्षेत्र के लिए समग्र जोखिम वर्ष 2014-15 की पहली छमाही के दौरान अपरिवर्तित रहा.
• वैयक्तिक आयाम में यद्यपि प्रणाली में चलनिधि स्थिति में सुधार हुआ फिर भी कमजोर स्थिति के साथ आस्ति गुणवत्ता में गिरावट के कारण चिंताएं बनी हुई हैं.
• संकेतक के लाभप्रदता आयाम ने सुधार दर्शाया किंतु यह धीमा रहा.
• तनाव परीक्षण दर्शाते हैं कि बैंकों की आस्ति गुणवत्ता में समष्टि आर्थिक स्थिति में प्रत्याशित सकारात्मक कार्यकलापों के अंतर्गत निकट भविष्य में सुधार हो सकता है और बैंक अपने मौजूदा प्रावधानों के स्तर के साथ प्रत्याशित हानि की क्षतिपूर्ति भी कर सकेंगे.
• अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की आस्ति गुणवत्ता अपने वर्तमान स्तर से बदतर हो सकती है यदि समष्टि आर्थिक स्थितियों में काफी गिरावट आती है और बैंकों से संभावना है कि वे प्रतिकूल समष्टि आर्थिक जोखिम परिदृश्य में प्रत्याशित हानि की क्षतिपूर्ति के लिए पर्याप्त प्रावधान रखने में कमी कर सकते हैं.
• अंतर-संबद्धता का विश्लेषण दर्शाता है कि कुल बैंकिंग क्षेत्र की आस्तियों के मामले में अंतर-बैंक बाजार के आकार में स्थिर गिरावट हो रही है.
• शीर्ष पांच सर्वाधिक संबद्ध बैंकों का संक्रामकता विश्लेषण दर्शाता है कि किसी विशेष बैंक में संक्रामकता सक्रिय होने की स्थिति में संयुक्त ऋण शोधन-चलनिधि स्थिति के तहत बैंकिंग प्रणाली संभाव्य रूप से अपनी कुल टीयर-1 पूंजी का बड़ा भाग खो सकती है.
वित्तीय क्षेत्र विनियमन और मूलभूत सुविधाएं
• जबकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जोखिम भारित आस्ति अनुपात पूंजी (सीआरएआर) सितंबर 2014 में 12.8 प्रतिशत पर संतोषप्रद है,
• आगे बैंकिंग क्षेत्र विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अतिरिक्त पूंजी बफर के संबंध में विनियामक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काफी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होगी.
• जानबुझकर चूक करने के मामलों को अलग करने पर बढ़े हुए विनियामक ध्यान संकेंद्रण और चूक होने के कारण होने वाली हानि में प्रवर्तकों की समान सहभागिता सुनिश्चित करने के साथ बड़े कॉर्पोरेट ऋण पुनर्संरचना (सीडीआर) मामलों के निवल आर्थिक मूल्य प्रभाव आकलन करने की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है.
• दूसरा पहलू जो बैंकों की आस्ति गुणवत्ता पर अतिक्रमण करता है वह कॉर्पोरेट लीवरेज़ और बैंकों के तुलन पत्रों पर इसका प्रभाव है, विशेषकर धारक कंपनी संरचना के माध्यम से और प्रवर्तकों द्वारा शेयर बंधक रखकर ‘दोहरा लीवरेज़’
• भारतीय शेयर बाजारों में हाल के महीनों में तेज वृद्धि हुई है। जबकि खुदरा निवेशक आधार अभी भी तुलनात्मक रूप से कम है, भारत के शेयर बाजार विदेशी निवेश की भारी राशि आकर्षित कर रहे हैं और इससे प्रत्यावर्तन का जोखिम बढ़ रहा है.
• भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने ट्रेड के निपटान में संभावित चूक से उत्पन्न होने वाले जोखिम को कम करने और घरेलू पूंजी बाजारों में जोखिम प्रबंध फ्रेमवर्क को सुदृढ़ करने के लिए कोर निपटान गारंटी निधि के रूप में एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच शुरू किया है.
• वास्तविक प्रयोक्ताओं/बचावकर्ता की भागीदारी और बाजार में मूल्य अन्वेषण की गुणवत्ता मंस सुधार करने की दृष्टि से वायदा बाजार कमीशन ने स्थिति सीमाएं संशोधित की हैं जो अनुमानित उत्पादन और रेखांकित पण्य वस्तुओं के आयात से जुड़ी हुई हैं.
• अनधिकृत जमा स्वीकार करने और वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित मुद्दों के निपटान के लिए राज्य स्तरीय समन्वय समिति (एसएलसीसी) व्यवस्था को वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की पहल के अंतर्गत सुदृढ़ किया गया है.
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