भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्या मामले में फांसी की सजा प्राप्त तीन लोगों को कानूनी राहत देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने उनके फांसी की सजा पर आठ हफ्ते यानी दो महीने के लिए 30 अगस्त 2011 को रोक लगा दी. राजीव गांधी बम कांड में साजिश के आरोपी मुरुगन, संतन और पेरारिवलन को 9 सितंबर 2011 को फांसी पर लटकाए जाने का निर्णय लिया गया था.
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी नागप्पन और न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन की पीठ ने अपने निर्णय में बताया कि राष्ट्रपति से दया की गुहार वाली तीनों सजायाफ्ताओं की याचिका पर 11 वर्ष से ज्यादा का विलंब हुआ. इस लिए पीठ ने तीनों आरोपियों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पुलिस को नोटिस जारी किया.
तीनों सजायाफ्ता लोगों की तरफ से पेश अधिवक्ताओं राम जेठमलानी, कोलिन गोंजाल्विस और आर वैगेई ने पीठ को तर्क दिया कि उनकी दया याचिकाओं के निपटारे में अधिक विलंब संविधान की धारा 21 (जीवन और निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा) का उल्लंघन है. वरिष्ठ अधिवक्ता रामजेठमलानी ने आरोपियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए बहस की.
ज्ञातव्य हो कि 21 मई 1991 को श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान लिट्टे (LTTE: Liberation Tigers of Tamil Eelam, एलटीटीई) के आत्मघाती दस्ते ने बम विस्फोट कर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (1984 से 1989 तक देश के प्रधानमंत्री) की हत्या कर दी थी.
वर्ष 1998 में विशेष अदालत ने मुरुगन, सांतन, पेरारिवलन और मुरुगन की पत्नी नलिनी समेत इस हत्याकांड के सभी 26 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी. वर्ष 1999 में सर्वोच्च न्यायालय ने चारों की मौत की सजा बरकरार रखी थी, लेकिन अन्य दोषियों की सजा कम कर दी थी. जेल में मां बनी नलिनी की दया याचिका पर उसकी मौत की सजा बाद में उम्रकैद में बदल दी गई थी.
राजीव गांधी बम कांड में साजिश के आरोपी मुरुगन, संतन और पेरारिवलन ने मौत की सजा के विरोध में राष्ट्रपति के यहां दया याचिका वर्ष 2000 में दी थी. राष्ट्रपति भवन से इन तीनों की दया याचिका अगस्त 2011 के अंतिम सप्ताह में खारिज की गई.
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय भी न्याय में देरी के आधार पर फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर चुका है. इस आधार पर फांसी माफी का पहला मामला वर्ष 1978 का केरल के आदिगम्मा का था. उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पांच साल से लटकी फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. उसी तरह मुंबई के प्रोफेसर अभ्यंकर हत्याकांड का दोषी भी देरी के आधार पर फांसी की सजा से बच गया था.
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