उच्चतम न्यायालय ने 2 नवम्बर 2015 को रोजगार गारंटी योजना मनरेगा के तहत समय से पारिश्रमिक और मुआवजे के भुगतान तथा दूसरी जिम्मेदारियों के मामले में ठीक से अमल नहीं होने से संबंधित एक जनहित याचिका का संज्ञान लिया और इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब तलब किया.
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुये कहा कि राज्यों को सजग होना चाहिए और तत्परता से भुगतान करना चाहिए. पीठ ने कहा कि यह पारिश्रमिक और मुआवजे के भुगतान में विलंब से संबंधित मसला है.
शीर्ष अदालत सूचना के अधिकार की कार्यकर्ता अरुणा राय और सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे तथा पूर्व नौकरशाह ललित माथुर की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में मरनेगा के लिये एक स्वतंत्र सोशल आडिट इकाई गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध गया है.
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मरनेगा) में व्याप्त अनियमितताओं ने ग्रामीण भारत के लोगों के लिये आजीविका मुहैया कराने के उद्देश्य को ही निरर्थक बना दिया है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रभावी तरीके से इस पर अमल नहीं करने के कारण यह कानून निष्प्रभावी हो गया है. याचिका में 2008 के कार्यान्यवयन दिशानिर्देशों में की गयी परिकल्पना के अंतर्गत मांग पर आधारित धन उपलब्ध कराने की व्यवस्था बहाल की जाए.
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