सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बताया कि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को सीधे भूमि का आवंटन करे. इस तरह का भूमि आवंटन कानून का उल्लंघन है और समर्थ प्राधिकरण की शक्ति का अतिक्रमण है.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने 25 अगस्त 2011 को इस संबंध में दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया. निर्णय के अनुसार यदि कोई व्यक्ति समर्थ प्राधिकरण से राहत पाने में नाकाम रहता है तो वह मुख्यमंत्री या फिर अन्य पदाधिकारियों की सहायता ले सकता है. परन्तु मुख्यमंत्री खुद से समर्थ प्राधिकरण के कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकते.
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