साइंटिफिक असेस्मेंट ऑफ ओजोन डिप्लिशन 2014 (Scientific Assessment of Ozone Depletion 2014) नामक एक रिपोर्ट 10 सितंबर 2014 को जारी की गई. इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने तैयार किया. रिपोर्ट में बताया गया है कि ओजोन की परत सही रास्ते पर है और आगामी कुछ दशकों में वह अपनी पहले जैसी स्थिति हासिल कर लेगा.
रिपोर्ट की मुख्य बातें
• 1986 में ओजोन परत को कम करने वाले मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ऑन सबस्टांस के तहत की गई कार्वारई ने ओजोन परत को 1980 के बेंचमार्क स्तर पर लाने में सक्षम बना रहे हैं.
• मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और संबंधित समझौतों ने कभी रेफ्रिजरेटरों, स्प्रे के डिब्बों, इन्सुलेशन फॉम और अग्नि शमन संबंधी उत्पादों में इस्तेमाल किए जाने वाले सीएफसी (क्लोरोफ्लोरोकार्बन) और हैलोन्स जैसी गैस के वायुमंडलीय बहुलता को कम किया है.
• 1980 और 1990 के दशक की शुरुआत में पूरे विश्व में कुल कॉलम ओजोन में गिरावट दर्ज की गई. वर्ष 2000 से, यह अपेक्षाकृत अपरिवर्तित बनी हुई है लेकिन हाल ही में इसमें कुछ सुधार के संकेत दिखाई दिए हैं.
• अंटार्कटिक ओजोन छेद लगातार बढ़ रहा है और इसके इस सदी में बढ़ने की संभावना है क्योंकि ओजोन कम करने वाले तत्वों के उत्सर्जन को रोकने के बावजूद वायुमंडल में वे मौजूद हैं.
• साल 2011 की सर्दी या बसंत ऋतु में आर्कटिक समताप मंडल विशेष रूप से ठंडा था जो कि इन परिस्थितियों में उम्मीद के मुताबिक अधिक ओजोन रिक्तीकरण का काम कर रहा था.
• मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में बहुत बड़ा योगदान दिया है.
• वर्ष 1987 में, ओजोन कम करे वाले पदार्थ ने करीब 10 गिगाटन्स C02 का योगदान किया जो हर वर्ष के उत्सर्जन के बराबर है. मॉन्ट्रिय प्रोटोकॉल ने अब इन उत्सर्जन को 90 फीसदी से अधिक तक कम कर दिया है.
• ओजोन कम करे वाले पदार्थ में कमी जलवायु परिवर्तन के क्योटो प्रोट्रोकॉल में पहली प्रतिबद्धता अवधि (2008–12) के लिए वार्षिक उत्सर्जन कमी लक्ष्य से पांच गुना अधिक की है.
• हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) फिलहाल 0.5 गीगाटन C02 के बराबर उत्सर्जन का योगदान प्रति वर्ष कर रहा है. ये उत्सर्जन हर वर्ष 7 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं. हालांकि एचएफसीएस ओजोन की परत को नुकसान नहीं पहुंचाता लेकिन उनमें से कई शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस हैं.
• वार्षिक अंटार्किट ओजोन छेद ने गर्मियों में निचले समताप मंडल के ठंडे होने की वजह से दक्षिणी गोलार्ध की सतही जलवायु में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं जिसकी वजह से सतह के तापमान, वर्षा और महासागरों पर मिलाजुला प्रभाव पड़ा है.
• उत्तरी गोलार्ध में, जहां ओजोन रिक्तीकरण कम है, वहां समताप मंडल ओजोन रिक्तीकरण और क्षोभमंडलीय जलवायु के बीच कोई मजबूत संबंध नहीं है.
• कार्बनडाइऑक्साइड, मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता वायुमंडल के तीन सबसे अधिक समय तक रहने वाले ग्रीन हाउस गैस हैं जो वैश्विक ओजन स्तरों को बढ़ाते हैं.

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