नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका में प्रकाशित राबर्ट कुंजिंग के लेख के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष आठ करोड़ बच्चों का जन्म हो रहा है. इस गति से अक्टूबर 2011 के अंत तक विश्व की जनसंख्या सात अरब हो जाएगी. इसमें सबसे ज्यादा योगदान गरीब देशों का है. वर्ष 2001-11 के मध्य इसमें तेज वृद्धि दर्ज की गई है. 1960 में दुनिया की आबादी तीन अरब थी जो 1999 में छह अरब हो गई. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2025 तक यह जनसंख्या आठ अरब से अधिक होने का अनुमान व्यक्त किया है. लेख के अनुसार 2050 तक आबादी नौ अरब हो जाएगी.
लेख के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के कारण धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ बढ़ा है. भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. प्राकृतिक संपदा सीमित होने के कारण पृथ्वी पर जमीन के नीचे पानी का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है. मिट्टी का क्षरण हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जल संपदा से मछलियां खत्म हो रही हैं. अगर इन संसाधनों को अब भी सहेजा नहीं गया तो आने वाले वर्षो में भुखमरी सबसे बड़ी महामारी का रूप ले लेगी. पीने के पानी की समस्या बढ़ जायेगी.
रिपोर्ट में 10-24 वर्ष की आयु के लोगों की जनसंख्या एक अरब अस्सी लाख हैं. अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पीढि़यों का चक्र और जनसंख्या को संतुलित रखने के लिए औसतन दंपति को 2.1 संतान होनी चाहिए. यूरोप और पूर्वी एशिया के कई हिस्सों में युवा लोग इतने नहीं हैं, कि वह तेजी से बढ़ते वृद्ध लोगों की जिम्मेदारी उठा सकें.
विदित हो कि जनसंख्या गणना 2011 के अनुसार भारत की आबादी 1210,193,422 (1.21 अरब) आंकी गई. यह जनसंख्या दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही है. दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन है, जिसकी जनसंख्या 1,350,044,605 (1.35 अरब) है. जनसंख्या के संदर्भ में विश्व में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है. भारत की 1947 में जनसंख्या 35 करोड़ और वर्ष 2001 में 102 करोड़ थी. भारत में युवाओं की संख्या का प्रतिशत लगभग 50 प्रतिशत है.
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