अफगानिस्तान के मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष डॉ सीमा समर, अमेरिकी राजनीतिक सिद्धांतकार जीन शार्प और तुर्की के पर्यावरण कार्यकर्ता हायरेट्टिन काराका और ब्रिटेन का संगठन हथियारों के व्यापार के विरुद्ध अभियान (Britain’s Campaign Against Arms Trade) को वर्ष 2012 के राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड के लिए चुना गया. इनके चयन की जानकारी स्वीडन में 27 सितंबर 2012 को दी गई. डॉ सीमा समर को यह पुरस्कार मानवाधिकार, विशेषकर महिला अधिकारों और बेहद जटिल एवं मुश्किल हालात में काम करने के लिए दिया गया. जबकि ब्रिटेन के संगठन हथियार व्यापार के विरुद्ध अभियान को उनके द्वारा हथियारों के वैश्विक व्यापार के खिलाफ अपने अभिनव और प्रभावी प्रचार के लिए दिया गया.
ज्यूरी ने अमेरिकी राजनीतिक सिद्धांतकार जीन शार्प को दुनिया में अहिंसक क्रांति का पहला जानकार बताया है. इसके साथ ही ब्रिटेन से हथियारों के निर्यात को रुकवाने के लिए अभियान चलाने वाली एक गैर सरकारी संस्था की कामयाबियों का श्रेय भी जीन शार्प को ही है. 90 वर्षीय हायरेट्टिन काराका को तुर्की के पर्यावरण अभियानों का पितामह कहा जाता है.
डॉ सीमा समर को वर्ष 1984 में भागकर पाकिस्तान जाना पड़ा. अफगानिस्तान में उस वक्त साम्यवादी सरकार थी और सीमा के पति गिरफ्तार होने के बाद लापता हो गए थे. इसके बाद सीमा समर वर्ष 2001 में तालिबान के पतन के बाद वतन लौटीं और देश की पहली महिला मंत्री बनीं. कनाडा में एक इंटरव्यू साक्षात्कार के दौरान शरिया कानून की आलोचना करने के कारण उन्हें छह महीने बाद ही मंत्रिपद छोड़ना पड़ा. वर्ष 2002 में सीमा को अफगानिस्तान के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. इसके अलावा वर्ष 2005 से 2009 तक वह सूडान में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से मानवाधिकार मामले पर रिपोर्ट बनाने की जिम्मेदारी भी संभाल चुकी हैं.
ज्यूरी ने 55 वर्षीय डॉ सीमा समर के बारे में कहा है दुनिया के सबसे ज्यादा जटिल और खतरनाक इलाके में मानवाधिकार और खासतौर से महिलाओं के अधिकार के लिए साहस के साथ काम करने वाले का यह सम्मान है.
विदित हो कि स्वीडिश जर्मन नागरिक जैकब फॉन युएक्सकुल ने राइट लाइवलीहुड पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1980 में की थी. इससे पहले नोबेल फाउंडेशन ने पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय विकास के क्षेत्र में काम के लिए अलग से पुरस्कार देने से मना कर दिया था. उसके विरोध में इन पुरस्कारों की शुरुआत हुई इसलिए इन्हें वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार कहा जाता है. पुरस्कार में मिलने वाली 1 लाख 50 हजार यूरो यानी करीब करोड़ रुपये की रकम तीनों विजेताओं में बांटी जाएगी. वर्ष 2012 के लिए पुरस्कारों की दौड़ में 52 देशों के 122 लोग थे. स्वीडिश संसद में एक विशेष समारोह के दौरान 7 दिसंबर 2012 को यह पुरस्कार दिया जाना है. भारत की पर्यावरणवादी वंदना शिवा को भी यह पुरस्कार मिल चुका है.
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