जनवरी 2014 में विश्व बैंक ने बिल्डिंग रिसाइलेंस फॉर ससटेनेबल डेवलपमेंट ऑफ द सुंदरबन्स शीर्षक से एक रणनीति रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के तटीय सुन्दरबन द्वीप समूह को होने वाली पर्यावरणीय क्षति पर सालाना 1290 करोड़ रुपयों की लागत आ रही है.
विश्व बैंक ने यह रिपोर्ट पश्चिम बंगाल सरकार के साथ मिलकर तैयार की है.
रिपोर्ट के निष्कर्ष
रिपोर्ट के निष्कर्षों को पांच अध्यायों के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
ये अध्याय हैं–
•अध्याय 1: साल 2009 में सुन्दरबन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 फीसदी पर्यावरण से हुई क्षति और क्षेत्र में स्वास्थ्य प्रभाव खर्च किया गया. इसलिए, सर्वाधिक प्राथमिकता भविष्य के अनिश्चित प्रभावों को हल करने को नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि पिछली घटनाओं के प्रभाव और वर्तमान स्थितियां जो लोगों को गरीब बना रही हैं, पर ध्यान देना चाहिए.
•अध्याय 2: समुद्र स्तर में पहले हुए बढ़ाव और भूमि घटाव के साथ– साथ चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में हुई वृद्धि जैवभौतिकीय प्रणाली के बदलाव की मांग कर रहा है, खासकर सदाबहार प्रणाली में लचीलापन, इसे महत्वपूर्ण सुरक्षित और उत्पादक कार्य दे सकता है. इसलिए भविष्य में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की भूमिका वर्तमान चुनौतियों की तुलना में कम जरूरी है जो कि संसाधन आधार में चल रही गिरावट पर छाया कर देती है.
•अध्याय 3: इस क्षेत्र में हस्तक्षेप में सावधान संतुलन बनाए रखने की जरूरत है ताकि आप्रवासन को प्रोत्साहित करने के दौरान अन्यों को जोखिम में न डालने को सुनिश्चित करने के दौरान खतरे में पड़े जीवों को जीवन प्रदान किया जा सके. इसलिए, बिजनेस–एज– यूजुअल ( बीएयू) विकास परिदृश्य का आंख मूंद कर पालन करना मामले को और बिगाड़ देगा और सुन्दरबन के निवासियों को क्षति पहुंचाएगा.
•अध्याय 4: सुन्दरबन क्षेत्र भौगोलिक और सामाजिकआर्थिक रूप से समरुप नहीं है. इसलिए उन लोगों को सक्षम बनाने या प्रोत्साहित करने के प्रयासों पर जोर दिया जाना चाहिए जो संक्रमण क्षेत्र में व्यापक आर्थिक विकास उच्च जोखिम क्षेत्रों से दूर हिस्सा ले सकते हैं. रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि संक्रमण क्षेत्र का करीब 250 वर्ग किलोमीटर की उत्पादक भूमि आने वाले पांच से दस वर्षों में कटाव, चक्रवाती प्रभावों और मुहाना परिवर्तन के कारण खत्म हो जाएगी.
•अध्याय 5: सरकारी संस्थानों और अन्य विभिन्न भागीदार कैसे एक साथ काम करते हैं, बीएयू परिदृश्य, इसके सभी विपरीत प्रभावों के साथ, में बुनियादी बदलाव करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों को लागू करने की जरूरत है जो सुन्दरबन के विशेष गुणों पर काम कर सके. वर्तमान में ऐसी योजनाएं इस क्षेत्र में लागू नहीं की गई हैं.
नीति का विकल्प
भविष्य की अनिश्चितताओं को संबोधित करने के लिए रिपोर्ट में नीतियों की एक सूची दी गई है जो समग्र सामाजिक और पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलापन में योगदान कर सकता है. यह विभिन्न विकास रणनीतियों से उत्पन्न होने वाली किसी भी वियोज्य विकल्प का प्रस्ताव नहीं देता लेकिन विकल्पों की सूची प्रदान करता है जो व्यापक रणीति के रूप में अच्छी तरह से काम करते हैं. आयोजन रूपरेखा में समय सीमा, स्थानिक भेद, क्षेत्रीय आयाम भी शामिल हैं.
समय- सीमाः इसमें कहा गया है कि निकट अवधि प्राथमिकताओं को 10 वर्ष में कर लिया जाना चाहिए ताकि 30 से 100वर्षों की अवधि में दीर्ध कालिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके.
स्थानिक भेदः क्षेत्र को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है और वे स्थिर ( स्टेबल) , संक्रमण (ट्रांजिशन) और प्रमुख (कोर) है.
क्षेत्रीय आयामः जहां संभव हो वहां क्षेत्रीय दृष्टिकोण पर अनुशंसाओं को निर्भर करने की सिफारिश की जाती है और कुछ मामलों में अनुशंसाएं एकल जिम्मेदार क्षेत्रीय संगठन में किया जा सकता है जबकि कुछ में क्षेत्रों के बीच जरूरी युग्म या सहकारी पहलों की आवश्यकता है.
लोच निर्माण और अनुकूलन क्षमता के चार स्तंभ
सामाजिकआर्थिक एवं जैवभौतिकीय प्रणालियों के लोच निर्माण के लिए और सुन्दरबन द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर प्रतिक्रिया के लिए, चार स्तंभ सुझाए गए हैं. ये हैं– जोखिम कम करना, गरीबी कम करना, जैव विविधता संरक्षण और संस्थागत बदलाव.
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