वैज्ञानिक नाइट्रस ऑक्साइड के उस उत्सर्जन को समझने का प्रयास कर रहे हैं, जो नदियों और झरनों से नि:सृत होता है और जिसका योगदान सूक्ष्मजीवियों (माइक्रोऑर्गनिजम्स) की आबादी द्वारा किया जाता है. नाइट्रस ऑक्साइड नाइट्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से बनने वाला यौगिक है. वह एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस है, जो जलवायु-परिवर्तन में अंशदान दे रहा है.
बोइस स्टेट यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ इडाहो के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम झरने का मिलकर अध्ययन करने निर्णय लिया. इस कृत्रिम झरने को फ्लूम कहा जाता है. यह ब्रॉडवे में इडाहो वाटर सेंटर और डाउनटाउन बोइस में फ्रंट स्ट्रीट्स के स्थलों पर अवस्थित है. यह प्रोजेक्ट नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) द्वारा वित्त पोषित है.
नाइट्रस ऑक्साइड मूलत: उर्वरकों में प्रयुक्त की जाती है, जो खेतों से बहकर नहरों में पहुँच जाती है. नाइट्रस ऑक्साइड हँसाने वाली गैस के रूप में भी जानी जाती है, जो पृथ्वी के वायुमंडल को भी प्रभावित करती है.
नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जनों का प्रभाव
नाइट्रस ऑक्साइड का रासायनिक सूत्र N2O है. वायुमंडल में इसका जीवनकाल 120 वर्ष है. ग्लोबल वार्मिंग की इसकी संभावना 100 वर्ष तक है. N2O एक पौंड कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 300 गुना योगदान करता है. विश्वभर में कुल N2O का 40% उत्सर्जन मानवीय गतिविधियों से आता है. जीवाश्म-ईंधन के दहन, कृषि, अपजल-प्रबंधन (वेस्टवाटर मैनेजमेंट) और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी मानवीय गतिविधियाँ वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड बढ़ाने में योगदान कर रही हैं.
नाइट्रस ऑक्साइड वायुमंडल से या तो कतिपय प्रकारों के बैक्टीरिया द्वारा आत्मसात कर लिए जाने पर हटती है या पराबैंगनी विकिरण से या रासायनिक प्रतिक्रियाओं से नष्ट की जाती है.
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