सरकारी नौकरी में अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरिष्ठता का लाभ असंवैधानिक है. सर्वोच्च न्यायालय ने मायावती सरकार द्वारा इस संबंध में किए गए कानून संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए इसे 27 अप्रैल 2012 को निरस्त कर दिया. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जो लोग संशोधित नियम का लाभ प्राप्त कर प्रोन्नति पा चुके हैं उन्हें छेड़ा नहीं जाएगा.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी व न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा 4 जनवरी 2011 को दिए गए निर्णय को सही ठहराया. इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाली उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस (रिजर्वेशन फार एससी एसटी और ओबीसी) अधिनियम 1994 की धारा 3 (7) को असंवैधानिक बताया था. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट सीनियरिटी थर्ड एमेंडमेंट रूल 8 (ए) को संवैधानिक ठहराने वाले निर्णय को निरस्त कर दिया.
ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने वर्ष 2007 में यूपी गवर्नमेंट सर्वेंट सीनियरिटी थर्ड एमेंडमेंट रूल में धारा 8 (ए) जोड़ी थी. इसमें अनुसूचित जाति-जनजाति को प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता का प्रावधान था.
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