सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान की विशेष पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System: निर्णायक मंडल) की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करने का निर्णय किया. ज्ञातव्य हो कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम (निर्णायक मंडल) करता है. केंद्र सरकार ने 4 अप्रैल 2011 को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायापालिका के एकाधिकार पर समीक्षा करने की मांग सर्वोच्च न्यायालय में की थी. केंद्र सरकार ने अपनी मांग में वर्ष 1993 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले की समीक्षा की मांग की, जिसके तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका को कार्यपालिका पर तरजीह दी गई थी.
5 अप्रैल 2011 को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान की विशेष पीठ ने केंद्र सरकार की इस मांग को प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली वृहत पीठ को सौंप दिया. साथ ही न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बीएस चौहान ने वृहत पीठ के विचार के लिए दस प्रश्न भी तैयार किए ताकि कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System: निर्णायक मंडल) की वैधानिक जांच हो सके. विशेष पीठ ने वृहत पीठ से इस तथ्य पर नए सिरे से विचार करने की अपेक्षा की है कि क्या अकेले न्यायपालिका को ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार है?
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएस चौहान की विशेष पीठ द्वारा समीक्षा हेतु बनाए गए 10 प्रश्न -
1. क्या 1993 में सर्वोच्च न्यायालय की 7 सदस्यीय पीठ और 1998 में नौ सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया फैसला संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुरूप है? यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है?
2. क्या कॉलेजियम प्रणाली के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति का संविधान में कोई प्रावधान है?
3. क्या न्यायिक फैसले से संविधान में संशोधन किया जा सकता है?
4. क्या संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के आपसी विचार-विमर्श और रजामंदी के बाद ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है अथवा अकेले न्यायपालिका ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकती है?
5. क्या सलाह का आशय सहमति से है?
6. क्या न्यायिक व्याख्या के जरिए संविधान में लिखे गए शब्दों को व्यर्थ बनाया जा सकता है जैसा कि उपरोक्त फैसलों (1993, 1998) में किया गया लगता है, जिसमें सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश की नियुक्ति में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से मंत्रणा को व्यर्थ बना दिया गया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में स्पष्ट शब्दों में इसकी अनुमति है?
7. क्या अनुच्छेद 124(2) की स्पष्ट भाषा को न्यायिक फैसले के जरिए बदला जा सकता है?
8. क्या ऐसी कोई परंपरा है कि राष्ट्रपति प्रधान न्यायाधीश की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं और क्या यह परंपरा 124(2) की स्पष्ट मंशा पर प्रभावी हो सकती है?
9. क्या न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश की राय को प्रधानता हासिल है और क्या ऐसी नियुक्तियों को वृहत पीठ रद्द कर सकती है?
10. क्या है कॉलेजियम प्रणाली? स्पष्ट व्याख्या.
ज्ञातव्य हो कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायाधीशों का वह पैनल ही कॉलेजियम (निर्णायक मंडल) कहलाता है जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है. भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्ष 1993 में एक निर्णय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में कार्यपालिका पर न्यायपालिका को तरजीह दी थी. उस निर्णय के उपरांत ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System: निर्णायक मंडल) से होने लगी.
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