सर्वोच्च न्यायालय ने जयपुर के पास मानसागर झील में स्थित विवादास्पद जलमहल से संबंधित राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया. साथ ही पट्टे (लीज) की अवधि 99 वर्ष से घटाकर मात्र 30 वर्ष कर दी. यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायधीश न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्रा घोष की खंडपीठ ने 26 अप्रैल 2014 को दिया.
इस ऐतिहासिक जलमहल के जीर्णोद्धार के लिए वर्ष 2005 में तत्कालीन राज्य सरकार ने लीज डीड की अधिसूचना जारी की थी जिस पर वर्ष 2012 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी. सर्वोच्च न्यायालय ने अपना यह फैसला राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय को जल महल रिसार्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की ओर से चुनौती दिए जाने के बाद दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस अवधि में सौ एकड़ भूमि का कुछ हिस्सा जो महल को झील से जोड़ता है इस परियोजना से अलग राज्य सरकार के अधीन ही रखने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने लीज पर दिए जाने वाले 14 एकड़ प्लाट के हिस्से में कोई निर्माण कार्य नहीं कराए जाने का भी निर्देश दिया.
परियोजना का पहला चरण फरवरी 2011 में ही पूरा हो गया था.
खंडपीठ ने कहा कि आदेश के जारी होने की तिथि से पहले चरण के कार्य का समापन प्रमाण-पत्र (Completion certificate) और लीज सहमति-पत्र तीस दिन के अंदर जारी कर दिया जाए.
मानसागर झील 17वीं सदी की है.
विदित हो कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस पर्यटन परियोजना को 17 मई 2012 को रद्द कर दिया था.
राजस्थान राज्य सरकार ने वर्ष 2005 में जल महल रिसार्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के साथ एक लीज का करार किया था. इस लीज की अवधि पहले तो 60 साल के लिए ही थी जिसे बाद में बढ़ाकर 99 साल कर दिया गया था.
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