सर्वोच्च न्यायालय ने 31 अगस्त 2015 को जैन समाज से संबंधित संथारा प्रथा से रोक हटाने का आदेश दिया. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने जैन समाज की संथारा (सल्लेखना) प्रथा पर रोक संबंधी राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
पूर्व में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस प्रथा को सुसाइड जैसा क्राइम बताते हुए इसे बैन कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में राज्य सरकार और केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जैन कम्युनिटी के संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
विदित हो कि निखिल सोनी नमक व्यक्ति ने वर्ष 2006 में संथारा प्रथा के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. उनकी दलील थी कि संथारा इच्छा-मृत्यु की ही तरह है. हाईकोर्ट ने कहा था कि संथारा लेने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 309 यानी सुसाइड का केस चलना चाहिए. संथारा के लिए उकसाने पर धारा 306 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए. वहीं, जैन संतों ने इस फैसले का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि कोर्ट में सही तरीके से संथारा की व्याख्या नहीं की गई. संथारा का मतलब आत्महत्या नहीं है, यह आत्म स्वतंत्रता है.
संथारा से समबन्धित मुख्य तथ्य:
संथारा, जैन समाज में हजारों साल पुरानी प्रथा है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु नजदीक है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना छोड़ देता है. मौन व्रत रख लेता है. इसके बाद वह किसी भी दिन देह त्याग देता है.
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