सर्वोच्च न्यायलय ने 14 सितंबर 2015 को सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री और नौकरशाहों की तस्वीरों के प्रकाशन पर प्रतिबंध के मामले में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा
यह निर्देश सर्वोच्च न्यायलय के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष की पीठ द्वारा तमिलनाडु, असम, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया गया.
इस मामले में राज्य सरकारों की दलीलें मई 2015 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ थीं.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए निर्देश जारी किया था कि राज्य और केंद्र सरकार के विभागों द्वारा समाचार पत्रों को जारी किए विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की ही तस्वीरें प्रकाशित की जाएँ.
यह निर्णय अदालत द्वारा नियुक्त एनआर माधव मेनन समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया.
राज्य सरकारों द्वारा सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश का विरोध क्यों ?
राज्यों का तर्क है कि वे भारत के संविधान के संघीय योजना में स्वायत्त राजनीतिक और प्रशासनिक संस्थाएं हैं.
इसलिए, वे केन्द्र सरकार की तरह विज्ञापनों में उनके राजनीतिक-प्रशासनिक प्रमुखों की तस्वीरें प्रकाशित करने के लिए के लिए अधिकृत हैं.
इसके अलावा राज्य सरकारों का कहना है कि उनके इस अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाना संघवाद संविधान के मौलिक सुविधा व बुनियादी संरचना के सिद्धांत के खिलाफ है.
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