अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की गिरती साख को थामने की कवायद हर तरफ से जारी है. अब भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मुद्रा बाजार में करेंसी डेरिवेटिव अर्थात मुद्रा विनिमय सौदों संबंधित नियमों को कड़े कर दिये. इसकी घोषणा सेबी की ओर से 9 जुलाई 2013 को की गई.
इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने भी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती स्थिति को सुधारने के लिए दिशा में एक और कदम उठाते हुए बैंकों पर मुद्रा विनिमय के लिए किसी भी तरह की प्रोप्राइटरी ट्रेडिंग करने पर रोक लगा दी थी. आरबीआई ने इसकी घोषणा 8 जुलाई 2013 को की थी.
आरबीआई के नियमन संबंधी प्रयासों के परिणामस्वरूप ही 8 जुलाई 2013 को भारतीय रुपये में डॉलर के मुकाबले 47 पैसे की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई और कारोबारी दिवस की समाप्ति पर यह 60.14 रुपये प्रति डॉलर था.
मुद्रा कारोबारी तथा निवेशक डॉलर सही विभिन्न मुद्राओं की जोड़ियों से संबंधित अग्रिम सौदे करते हैं. सेबी के प्रयासों में इस तरह के सौदों की उपरी सीमा कम करना तथा डॉलर-रुपये सौदों में मार्जिन को दोगुना करना शामिल है. अब कारोबारी बिचौलिये अपने द्वारा किये गये कुल सौदों को अधिकतम 15 फीसदी या पांच करोड़ डॉलर की सीमा तक ही कर सकते हैं. हालांकि ग्राहकों केलिए यह सीमा छह फीसदी या 1 करोड़ होगी.
सेबी के द्वारा लाये गये नये नियम 11 जुलाई 2013 से ही लागू किये जाएंगे.
डॉलर के मुकाबले रूपये की गिरती कीमत के कारक
- अपर्याप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा विदेशी संस्थागत निवेश
- उभरते बाजारों पर यूरोपीय संकट का प्रभाव
- चालू वित्तीय घाटा
- कमजोर औद्योगिक उत्पादन तथा उच्च ब्यार दरें
- सरकार की अधिनियामक तथा नीतिगत अक्षमता
- सुरक्षित तथा तरल बांडों की ओर मुद्रा प्रवाह का बढ़ना
- रेटिंग घटने की संभावना
- नियंत्रण के बाहर मुद्रास्फीति
- सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट
- चीन में मंदी से कमोडिटी आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव
- जोखिम घटने से डॉलर सूचकांक में मजबूती
- केंद्रीय बैंक के प्रोत्साहन उपायों का गिरता प्रभाव
रूपये के गिरते मूल्य को थामने के लिए रिजर्व बैंक ने उठाये कदम
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