‘अड्रेसिंग ग्लोबल मॉर्टैलिटी फ्रॉम एम्बिएंट पीएम 2.5’ (Addressing Global Mortality from Ambient PM 2.5) नामक एक अध्ययन रिपोर्ट 16 जून 2015 को प्रकाशित की गई. इस शोध अध्ययन में कहा गया है कि हवा की गुणवत्ता में सुधार लाकर भारत और चीन जैसे प्रदूषित देशों में प्रति वर्ष 14 लाख लोगों को समय से पहले मौत से बचाया जा सकता है.
यह अध्ययन द यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ऑस्टिन के कोक्रेल स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग के यहोशू एस आप्टे के नेतृत्व शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई. यह अध्ययन जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस & टेक्नोलॉजी में प्रकाशित की गई.
अध्ययन यह मूल्यांकन करता है कि कैसे कण तत्व (Particulate Matter ,PM2.5) को कम करके क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर परिवेशी वायु गुणवत्ता में सुधार कर मृत्यु दर को कम कर सकते हैं.
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
• अध्ययन ने यह चेतावनी भी दी है कि यदि वायु प्रदूषण को रोका नहीं गया तो अगले 15 वर्षों के दौरान भारत और चीन में इससे होने वाली मौतों में 20 से 30 फीसद की वृद्धि हो जाएगी.
• शोधकर्ताओं के अनुसार अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वायु कण गुणवत्ता संबंधी दिशानिर्देशों को पूरा कर लिया जाता है तो दुनियाभर में बाह्य वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष होने वाली 21 लाख लोगों की मौतों को रोका जा सकेगा.
• अधिक प्रदूषित क्षेत्रों यथा भारत और चीन में हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार करके कण तत्व PM2.5 से कम करके मौतों को कम किया जा सकता है.
• शोधकर्ताओं के अनुसार, कण तत्व (पार्टिकुलेट मैटर) से बाह्य वायु प्रदूषण 2.5 माइक्रोन से कम होना चाहिए.
• दुनियाभर में रह रहे अधिकतर लोग डब्ल्यूएचओ की हवा की गुणवत्ता के दिशानिर्देश 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से काफी अधिक कण तत्व वाले क्षेत्रों में रहते हैं. जबकि भारत और चीन के कुछ क्षेत्रों में यह स्तर 100 से ऊपर है.
• अध्ययन में एक अहम बात यह कही गई है कि प्रदूषण स्तर को स्थिर कर लेने के बावजूद लोगों की बढ़ती उम्र के चलते कई देशों में स्वास्थ्य को लेकर खतरा बढ़ सकता है.
• विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में हवा को स्वच्छ करने के लिए एक प्रभावी कार्यक्रम को लागूकर प्रतिवर्ष कई सौ हजार समय से पहले होने वाली मौतों बचाया जा सकता है.
• शोधकर्ताओं के अनुसार, कण तत्व (पार्टिकुलेट मैटर) से बाह्य वायु प्रदूषण 2.5 माइक्रोन से कम होना चाहिए. वायुमंडल के ये कण फेफड़े के अंदर चले जाते हैं. सांस के साथ जाने वाले इन कणों से हृदयाघात, लकवा, अन्य हृदय व सांस के रोगों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
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