हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो परमानंद श्रीवास्तव का गोरखपुर में लंबी बीमारी के बाद एक निजी अस्पताल में 5 नवम्बर 2013 को निधन हो गया. वह 80 वर्ष के थे.
प्रो परमानंद श्रीवास्तव ने डॉ नामवर सिंह के साथ लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन किया. उन्हें भारत-भारती और व्यास सम्मान समेत तमाम पुरस्कार मिले थे.
प्रो परमानंद श्रीवास्तव के जीवन से संबंधित मुख्य तथ्य
• डॉ परमानंद श्रीवास्तव की गणना हिंदी के शीर्ष आलोचकों में होती है.
• उन्होंने लंबे समय तक साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन किया.
• उन्होंने लेखन की शुरुआत कविता से की लेकिन आलोचना ने ही उन्हें पहचान दिलाई.
• उन्हें साहित्य में योगदान हेतु उत्तर प्रदेश सरकार का प्रसिद्ध भारत भारती पुरस्कार (वर्ष 2006) और केके बिड़ला फाउंडेशन का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान (वर्ष 2006) से सम्मानित किया गया.
• प्रो परमानंद श्रीवास्तव की कुछ मुख्य कृतियों में उजली हँसी के छोर पर (1960), अगली शताब्दी के बारे में (1981), चौथा शब्द (1993), रुका हुआ समय (2005), नई कविता का परिप्रेक्ष्य (1965), हिन्दी कहानी की रचना प्रक्रिया (1965), कवि कर्म और काव्यभाषा (1975) आदि शामिल हैं.
• उनका जन्म 10 फरवरी 1935 को उत्तर प्रदेश स्थित गोरखपुर के बांस गांव में हुआ था.
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