केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए राष्ट्रीय अभियान के दस्तावेज को मंजूरी 28 फरवरी 2014 को प्रदान की. यह अभियान जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के तहत 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया गया था, जिसके लिए 550 करोड़ रूपये का प्रावधान रखा गया था.
इस अभियान के तहत हिमायल क्षेत्र में स्थित ग्लेशियरों को बचाने और उनसे संबंधित अन्य गतिविधियों का अध्ययन करने, प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन, जैव विविधता को बचाने और उनकी सुरक्षा, वन्य जीवों की सुरक्षा एवं संरक्षा तथा हिमायल क्षेत्र के निवासियों के पारंपरिक ज्ञान का प्रचार एवं उनकी आजीविका का प्रबंध करना शामिल है.
इस मिशन के तहत हिमालय क्षेत्र में रहने वाले समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने का उपाय भी किया जायेगा. हिमालय क्षेत्र के सीमान्त और आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर समुदायों को सर्वाधिक लाभ प्राप्त होगा. इस अभियान के तहत जम्मू एवं कशमीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय जैसे पर्वतीय राज्यों सहित असम और पश्चिम बंगाल जैसे आंशिक पर्वतीय राज्य शामिल किए गए हैं.
पृष्ठिभूमि
जलवायु परिवर्तन हाल के समय में पर्यावरण विकास योजना का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सतत विकास के भारत के सपने को पूरा करने के क्रम में जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद ने पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए राष्ट्रीय अभियान (National Action Plan on Climate Change) का शुभारंभ जून 2008 में किया था.
एनएपीसीसी के अंतर्गत राष्ट्रीय सौर-अभियान, राष्ट्रीय परिष्कृत ऊर्जा क्षमता अभियान, राष्ट्रीय संवहनीय आवास अभियान, राष्ट्रीय जल अभियान, राष्ट्रीय हिमालय पारिस्थतिक तंत्र संवहन अभियान, राष्ट्रीय हरित भारत अभियान, राष्ट्रीय संवहनीय कृषि अभियान और राष्ट्रीय जलवायु संबंधी रणनीतिक ज्ञान अभियान कार्य कर रहे हैं.
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