द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में सातवाहनों का साम्राज्य महाराष्ट्र के पुणे से लेकर आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों तक था | सातवाहन राजवंश दूसरी शताब्दी में काफ़ी मजबूत हो गये थे| सातवाहन वंश आंध्र प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध राजवंषों में से था | इनके बारे में अधिकांश जानकारी इस काल की चाँदी, सीसे व तांबे के मुहरों से प्राप्त होती है |
सातवाहनों को ब्राह्मण माना जाता है, इनके द्वारा जारी किए गये सिक्के अधिकतर द्विभाषीय हैं | शासकों के नाम कहीं- कहीं दक्षिण भारतीय भाषा तथा प्राकृत में है |
सातवाहन बौद्ध धर्म में विश्वास करते थे | सातवाहन काल में अमरावती व नागार्जुनकोंडा बुद्ध धर्म के महत्वपूर्ण केंद्र बने | सिमुक, कान्हा, सात्कर्नि-1 व सात्कर्नि-2, हाला, गौतमीपुत्र शत्कारणी, पुलुमई-2 इस वंश के महत्वपूर्ण शासक थे |
सिमुक इस वंश का संस्थापक था | शतकरनी-2 इस वंश का सबसे लंबा शासन करने वाला शासक था | इसका उल्लेख खेरवाला के हाथी गुंफा अभिलेख में है, जिसमे उसे खेरवाला का शत्रु बताया गया है |
हला इस वंश का 17वाँ शासक था | इसने प्राकृत भाषा में एक ग्रंथ का संकलन करवाया जिसे गाथा सप्तशती के नाम से जानते हैं |गौतमीपुत्र शतकार्नी इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था, इसे शक, पल्लव व येवान शक्तियों का विनाशक कहा गया | इसने राज-राज तथा महाराज की उपाधि ग्रहण की |
सातवाहनों का प्रशासन :
संपूर्ण राज्य जनपद मे विभाजित था तथा पुनः अहरस में उपविभाजित था | प्रत्येक आहर अमात्य द्वारा प्रशासित होता था | यह पुनः ग्राम में विभाजित होता था जिसका मुख्य ग्रामिका के हाथ में होता था | सातवाहन प्रशासन में ग्रामीण क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारी को गौल्मीका कहते थे |
ध्यान रखने योग्य तथ्य:
• नासिक में प्राप्त दो गुफा अभिलेख गौतमीपुत्र शत्कारणी से संबंधित है |
• सातवाहन अभिलेख में पहली बार अमात्य के कार्यालय का वर्णन है |
• नगनिका (शत्कारणी की पत्नी) का नानाघाट अभिलेख पुणे के पास से प्राप्त हुआ है|
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