जब भी कोई तमिलनाडु के बारे में सोचता है, तो आमतौर पर बंगाल की खाड़ी का शांत समुद्र तट, ऐतिहासिक मंदिर और हरे-भरे धान के खेत ही दिमाग में आते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस राज्य में भारत का एक ऐसा रेगिस्तान भी है, जैसा आपने पहले कभी नहीं देखा होगा?
यह थूथुकुडी और तिरुनेलवेली जिलों में स्थित 'थेरी काडू' है, जो 500 वर्ग किलोमीटर में फैला लाल रेत का एक अजूबा है।
मंगल ग्रह जैसा दिखने वाला रेगिस्तान
समय और प्रकृति की शक्तियों से बने गहरे लाल रंग के टीले इस अनोखे इलाके को दूसरों से अलग बनाते हैं। यहां की रेत में आयरन ऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। इसी वजह से इसका रंग चटक लाल है, जो इसे देश के अन्य सूखे इलाकों से अलग पहचान देता है।
थेरी काडू कैसे बना
थेरी काडू के बनने की कहानी हजारों साल पुरानी है, जो 'क्वाटरनरी पीरियड' में शुरू हुई थी। इस इलाके का शाब्दिक अर्थ 'लाल टीलों का जंगल' है। ऐसा माना जाता है कि यह हवा (aeolian) और समुद्री जमाव के बीच एक जटिल प्रक्रिया के कारण बना।
लगभग 10,000 साल पहले, 'लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम' (अंतिम हिमयुग का चरम) के दौरान समुद्र का स्तर बहुत कम था। इसके कारण समुद्र का एक बड़ा हिस्सा जमीन के रूप में उभर आया था। मदुरै के एग्रीकल्चरल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में मृदा और पर्यावरण विभाग की प्रमुख डॉ. क्रिस्टी निर्मला मैरी बताती हैं कि उस समय तेज हवाएं चलीं। ये हवाएं इस खुली समुद्री सतह और पश्चिमी घाट से आयरन से भरपूर मिट्टी को उड़ाकर तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर जमा करती गईं। इसी रेत के धीरे-धीरे जमा होने से वे लहरदार टीले बने, जो आज थेरी काडू की पहचान हैं।
थेरी काडू: एक आम रेगिस्तान नहीं
हालांकि थेरी काडू में रेगिस्तान जैसी परिस्थितियां हैं, लेकिन यह लंबे समय तक सूखे के कारण बना कोई आम रेगिस्तान नहीं है। डॉ. क्रिस्टी के अनुसार, "थेरी काडू लाल लौहयुक्त मिट्टी से बना है। यह खिसकती रेत और हवा द्वारा लाए गए पदार्थों के जमा होने का नतीजा है।"
ये भूवैज्ञानिक निशान इस बात का सबूत हैं कि यह इलाका कभी पानी के नीचे था। इससे पता चलता है कि पृथ्वी के परिदृश्य कितने गतिशील और अद्भुत हैं।
थेरी काडू में टीलों के प्रकार
थार जैसे बड़े रेगिस्तानों की तुलना में थेरी काडू भले ही छोटा है, लेकिन इसकी बनावट काफी दिलचस्प है। समुद्र तट से दूरी के आधार पर इस रेगिस्तान को तीन अलग-अलग प्रकारों में बांटा गया है:
इनलैंड थेरी: ये टीले समुद्र से सबसे दूर हैं और तुलनात्मक रूप से स्थिर हैं।
तट के पास वाले थेरी: ये टीले अंदरूनी और तटीय इलाकों के बीच में हैं। हवा और इंसानी गतिविधियों के कारण इनमें थोड़ा बदलाव होता रहता है।
तटीय थेरी: इन तीनों में ये सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। दक्षिण-पश्चिम से आने वाली तेज हवाओं के कारण ये टीले लगातार बदलते रहते हैं, जिससे यहां का परिदृश्य भी बदलता रहता है।
लाल रेगिस्तान के जीव-जंतु और वनस्पतियां
इस लौहयुक्त मिट्टी में लिमोनाइट, मैग्नेटाइट, हेमाटाइट जैसे आयरन युक्त खनिज पाए जाते हैं।
इस लाल रेगिस्तान में यूरेशियन केस्ट्रेल, स्पॉटेड ओवलेट्स (चित्तीदार उल्लू), फैन-थ्रोटेड लिजार्ड (एक तरह की छिपकली) और वेलवेट पूची (एक कीड़ा) जैसी प्रजातियां भी पाई जाती हैं। यहां ताड़ और काजू जैसे पेड़ और कुछ झाड़ियां हैं, लेकिन सूखे के कारण यहां वनस्पतियों का उगना मुश्किल है।
पृथ्वी के इतिहास का एक जीता-जागता सबूत
थेरी काडू सिर्फ तमिलनाडु के बीच में लाल रेत का एक इलाका नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी के गतिशील अतीत का एक जीता-जागता उदाहरण है। इस रहस्यमयी रेगिस्तान में कई राज छिपे हैं, जिन्हें जानना अभी बाकी है। इसमें क्वाटरनरी पीरियड में इसकी शुरुआत से लेकर प्राकृतिक कारणों से होने वाले निरंतर बदलावों तक की कहानी शामिल है।
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