भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान(ISRO) इन दिनों एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इसकी प्रमुख वजह है कि Chandrayaan-3, जिसके माध्यम से भारत एक बार फिर से चांद की सतह पर पहुंचना चाहता है।
इसरो द्वारा इस मिशन के लांच की घोषणा की बाद से दुनिया भर की निगाहें भारत की तरफ देख रही हैं और सभी 14 जुलाई को उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं, जब भारत इस मिशन की मदद से चांद पर पहुंचेगा।
हालांकि, क्या आपको पता है कि आखिर क्या वजह है कि जो ISRO एक बार फिर से चांद की सतह पर जाने के लिए प्रयास कर रहा है और इससे क्या फायदा होने वाला है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
सबसे पहले नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर रखे थे कदम
चांद पर पहुंचने वाले सबसे पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग थे, जिन्होंने जुलाई 1969 में यह साबित कर दिया था कि चंद्रमा इंसान की पकड़ से दूर नहीं है।
NASA ने 3,84,000 किलोमीटर दूर चांद को बेहतर ढंग से समझने के लिए चंद्रमा की सतह पर अपोलो मिशन उतारा था। इस दौरान चांद की मिट्टी को भी पहली बार धरती पर लाया गया था, जिस पर खोज की गई थी।
चांद पर नहीं है कोई वातावरण
शुरुआती 90 के दशक में वैज्ञानिकों का ध्यान मंगल ग्रह की ओर भी गया था। हालांकि, वैज्ञानिक चंद्रमा को मंगल ग्रह पर मिशन लांच करने के लिए एक लागत प्रभावी और सुरक्षित मंच प्रदान करने वाला मानते हैं।
आपको बता दें कि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल या हवा नहीं है, इसलिए यहां पर अंतरिक्ष वाहनों को लांच करने में बहुत कम प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
बहुत कमजोर है गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र
चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में बहुत कमजोर है। इस वजह से यहां पर लोअर एस्केप वेलोसिटी है। चांद पर किसी भी प्रकार का कोई वातावरण नहीं है, ऐसे में मिशन को वहां लांच करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
ऐसे में यदि वैज्ञानिकों को मंगल या फिर किसी अन्य ग्रह पर कोई मिशन लांच करना है, तो चांद अंतरिक्ष में मौजूद एक बेहतर लागत प्रभावी मंच बन सकता है।
इन चीजों में मिलेगी मदद
यदि चांद पर मिशन सफलतापूर्वक होता है, तो यहां के वातावरण के हिसाब से चंद्रमा पर Radio Astronomy, Gravitational waves और Astrophysics में अनुसंधान करना और भी आसान हो सकता है।
आपको बता दें कि चांद की सतह पर Gravitational waves (गुरुत्वाकर्षण तरंग) के लिए प्रस्ताव भी दिए गए हैं। यहां के वातावरण इन चीजों पर अनुसंधान के लिए उपयुक्त है, जो कि धरती या फिर कहीं और नहीं मिल सकता है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में भौतिकी और खगोल विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. करण जानी ने एक मीडिया को दिए साक्षात्कार में कहा कि चांद का वैक्यूम वातावरण, कम ग्रेविटेशनल फोर्स और अधिक जगह ग्रेविटेशनल डिटेक्टर के लिए एक जरूरी माहौल को बनाती हैं।
वहीं, इसरो के वैज्ञानिक रहे डॉ. श्रीकुमार ने एक साक्षात्कार में कहा कि चंद्रमा पर महत्वपूर्ण संसाधनों का भंडार हो सकता है। हालांकि, अभी इसे लेकर पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है।
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