किन किन देशों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से चुनाव होता है?

चीन, दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है लेकिन वहां पर लोकतंत्र नहीं है इस कारण भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है. भारत में आम चुनाव 5 वर्ष की अवधि के बाद कराये जाते हैं लेकिन यदि सरकार 5 साल के पहले गिर जाए तो पहले भी चुनाव कराये जा सकते हैं.
भारत में बहुत साल तक चुनाव मतदान पत्र की मदद से कराये जाते रहे हैं लेकिन यह प्रक्रिया काफी महँगी, धीमी, अपारदर्शी और पर्यावरण विरुद्ध थी इस कारण देश में प्रयोग के तौर पर पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग 1982 में केरल ‘पारुर विधानसभा’ क्षेत्र में किया गया था.
इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनावों में भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग सीमित निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न करायी जा रही है.
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के बारे में; (About Electronic Voting Machine)
भारत में इस्तेमाल की जा रही EVM में अधिकतम 2,000 वोट रिकॉर्ड किये जा सकते हैं. इन EVM को सार्वजनिक क्षेत्र के दो उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) द्वारा तैयार और डिजाइन किया गया है.
इन EVM को चलाने के लिए बिजली की जरूरत भी नहीं पडती है क्योंकि इनमें पहले से ही बैटरी बैक-उप की व्यवस्था होती है. इसलिए इन मशीनों की मदद से उन इलाकों में भी चुनाव कराया जा सकता है जहाँ पर बिजली नहीं होती है.
एक EVM में नोटा सहित अधिकतम 64 उम्मीदवारों के लिए वोट डाले जा सकते हैं. हालाँकि साधारणतः इसमें 16 उम्मीदवारों के चुनाव चिन्ह का ही प्रावधान होता है लेकिन जरूरत के अनुसार मतपत्र इकाइयाँ संलग्न की जा सकती हैं.
ज्ञातव्य है कि M3-ईवीएम की कीमत लगभग प्रति यूनिट लगभग 17,000 रु. है.
आइये अब जानते हैं कि किन-किन देशों में EVM से चुनाव होता है; (Which country use EVMs in Elections)
यह ध्यान रखना बहुत दिलचस्प है कि EVM के उपयोग के बारे में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रुझान देखे जाते हैं. जहाँ यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देश EVM प्रणाली से दूर हो रहे हैं वहीँ दक्षिण अमेरिका और एशिया के देश EVM में रूचि दिखा रहे हैं.
कुल मिलाकर 31 देशों में EVM को इस्तेमाल किया गया है जिनमें से केवल 4 देशों में इसे पूरे देश में इस्तेमाल किया जाता है, 11 देशों में इसे देश के कुछ हिस्सों या कम महत्वपूर्ण चुनावों में इस्तेमाल किया जाता है, 3 देशों जर्मनी, नीदरलैंड और पुर्तगाल ने EVM का इस्तेमाल बंद कर दिया है जबकि 11 देशों ने इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाया है और बंद करने का फैसला कर लिया है.
भारत ने EVM से सम्बंधित तकनीकी सहायता जॉर्डन, मालदीव, नामीबिया, मिस्र, भूटान और नेपाल को दी है. इन देशों में भूटान, नेपाल और नामीबिया भारत में बनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग कर रहे हैं.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग दुनिया के कुछ सबसे बड़े लोकतंत्रों में किया जाता है, जिसमें ब्राजील, भारत और फिलीपींस शामिल हैं. कुछ अन्य देशों के नाम हैं;
1. बेल्जियम
2. एस्टोनिया
3. वेनेजुएला
4. संयुक्त अरब अमीरात
5. जॉर्डन
6. मालदीव
7. नामीबिया
8. मिस्र,
9. भूटान
10. नेपाल
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किन बड़े देशों में EVM से चुनाव नहीं होता है; (Which country dont' use EVMs in Elections)
बड़े आश्चर्य की बात है कि पूरी दुनिया में अपनी तकनीकी का लोहा मनवाने वाले विकसित देशों में भी बैलट पेपर की मदद से चुनाव कराया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के माध्यम से चुनावों की सुरक्षा, सटीकता, विश्वसनीयता और सत्यापन के बारे में गंभीर संदेह पूरे विश्व में उठाये जाते हैं.
इंग्लैंड, फ़्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
अमेरिका में ई-वोटिंग का एकमात्र रूप ईमेल या फैक्स के माध्यम से है. तकनीकी रूप से, मतदाता को एक मतपत्र फॉर्म भेजा जाता है, वे इसे भरते हैं, इसे ईमेल द्वारा वापस करते हैं, या अपनी पसंद के व्यक्ति पर निशान लगाकर अर्थात डिजिटल फोटो को चिह्नित करते हुए वापस फैक्स करते हैं.
अक्टूबर 2006 में, नीदरलैंड ने ईवीएम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था. वर्ष 2009 में, आयरलैंड गणराज्य ने इसके उपयोग पर रोक लगा दी और इटली ने भी ऐसा ही किया था.
मार्च 2009 में, जर्मनी के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ईवीएम के माध्यम से मतदान असंवैधानिक था. कोर्ट ने यह माना कि चुनाव में पारदर्शिता लोगों का संवैधानिक अधिकार है लेकिन "दक्षता" संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल्य नहीं है.
यह पहली बार नहीं है जब देश में ईवीएम को लेकर बहस छिड़ी है. वर्ष 2009 में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस मुद्दे पर हंगामा किया था, हालांकि वह उस समय भाजपा के साथ नहीं थे, और कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में थी. हालाँकि अब इस मुद्दे पर स्वामी जी शांत हैं लेकिन अन्य राजनीतिक पार्टियाँ EVM को हटाने की मांग कर रही हैं.
सारांश के तौर पर यह कहना ठीक होगा कि चुनाव चाहे मशीन से हों या बैलट पेपर से, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन जनता के द्वारा चुना गया प्रतिनिधि साफ सुथरे तरीके चुना जाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि बैलट पेपर से चुनाव होते हैं तो हर हाल में बिना किसी धांधली के संपन्न हो जाते हैं और यही बात EVM से चुनाव कराने के मामले में लागू होती है.
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