जानें भारत में अंग्रेजों की सफलता के क्या-क्या कारण थे?

Sep 14, 2018, 12:09 IST

18वीं शताब्दी के मध्य में, भारत वास्तव में चराहे पर खड़ा था। इस विभिन्य ऐतिहासिक शक्तियां गतिशील थी, जिसके परिणामस्वरुप देश एक नई दिशा की ओर उन्मुख हुआ। कुछ इतिहासकार इसे 1740 का वर्ष मानते हैं, जब भारत में सर्वोच्चता के लिए आंग्ल-फ़्रांसीसी संघर्ष की शुरुवात हुई थी। इस लेख में हमने बताया है की कौन-कौन से कारणों की वजह से अंग्रेजो को भारत में सफलता मिली जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

What were the forces and factors for the success of British in India in Hindi
What were the forces and factors for the success of British in India in Hindi

18वीं शताब्दी के मध्य में, भारत वास्तव में चराहे पर खड़ा था। इस विभिन्य ऐतिहासिक शक्तियां गतिशील थी, जिसके परिणामस्वरुप देश एक नई दिशा की ओर उन्मुख हुआ। कुछ इतिहासकार इसे 1740 का वर्ष मानते हैं, जब भारत में सर्वोच्चता के लिए आंग्ल-फ़्रांसीसी संघर्ष की शुरुवात हुई थी।

यह भारतीय इतिहास में ऐसा समय था जब विभिन्य घटनाक्रम घटित हो रहे थे। यह उस समय स्वाभाविक नहीं था, जैसा आज प्रतीत होता है, की मुग़ल साम्राज्य अपने अंतिम दौर में था, मराठा राज्य स्थितियों से उबार नहीं पाया और ब्रिटिश सर्वोच्चता टाला नहीं जा सका। फिर भी, परिस्थितियां, जिनके अंतर्गत  ब्रिटिश को सफलता प्राप्त हुई थी, स्पष्ट नहीं था और अंग्रेजों द्वारा सामना किये गए कुछ गतिरोध गंभीर प्रकृति के नहीं थे।  यह वह विरोधाभास है जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की सफलता के कारणों को विचारणीय महत्व का विषय बना देता है। ब्रिटिश के सफलता के कारणों पर नीचे चर्चा की गयी है:

उत्कृष्ट हथियार: अंग्रेज़ अस्त्रों, सैन्य  युक्तियों एवं राजनीती में सर्वोकृष्ट थे। 18वीं शताब्दी में भारतीय शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अग्नेयास्त्र बेहद धीमे एवं भारी थे और अंग्रेजों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले यूरोपीय बंदूकों एवं तोपों ने गति एवं दुरी दोनों ही लिहाज़ से बाहर कर दिया था। यूरोपीय पैदल सेना भारतीय अश्वारोही सेना की तुलना में तीन गुना अधिक तेज़ी से प्रहार कर सकती थी। यह सच है की, कई भारतीय शासकों ने यूरोपीय हथियारं का आयत किया और यूरोपीय हथियारों को चलने में अपने सैनिकों को प्रशिक्षण करने के लिए यूरोपीय अधिकारीयों की सेवाएँ ली। लेकिन दुर्भाग्यवश, भारतीय सैन्य एवं प्रशासक नौसिखिए के स्तर से कभी भी ऊपर नहीं उठ पाए और अंग्रेज़ अधिकारीयों तथा उनके प्रशिक्षित सैनिकों की जरा भी बराबरी नहीं कर सके।

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सैन्य अनुशासन: अग्रेजों के सैन्य अनुशासन को उनकी सफलता का मुख्या कारण माना जाता है। वेतन के नियमित भुगतान की व्यवस्था और अनुशासन की कड़ी सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित किया। अधिकतर भारतीय शासकों के पास सेना के वेतन के नियमित भुगतान के लिए पर्याप्त धन नहीं था। भारतीय शासक निजि परिवारजनों या किराये के सैनिकों की भीड़ पर निर्भर थे जो अनुशासन के प्रति जवाबदेह नहीं थे और विद्रोही हो सकते थे या जब स्थिति ठीक न हो तो विरोधी खेमे में जा सकते थे।

असैनिक अनुशासन: कंपनी के अधिकारीयों एवं सैनिकों का असैनिक अनुशासन एक अन्य कारक था। उन्हें उनकी विश्वनीयता एवं कौशल न  की वंशगत या जाती और कुल के आधार पर कार्य सौंपे जाते थे। वे स्वयं कड़े अनुशासन के अधीन थे और उद्धेश्यों के प्रति जागरूक थे। इसके विपरीत भारतीय प्रशासक और सैन्य अधिकारी अक्सर गुणों एवं योग्यता की उपेक्षा करते हुए, उनकी क्षमता संदेहजनक थी और वे प्राय: अपने निहित स्वार्थो को पूरा करने के चलते विद्रोह एवं विश्वासघाती हो जाते थे।

मेघावी नेतृत्व: प्रतिभाशाली नेतृत्व ने अंग्रेजों को एक अन्य लाभ प्रदान किया। क्लाइव, वारेन हास्टिंग, एलफिंसटन, मुनरो, मारक्यूज़, डलहौजी आदि ने नेतृत्व के दुर्लभ गुण का प्रदर्शन  किया। भारत की तरफ से भी हैदर अली, टीपू सुल्तान, चीन क्लिच खां, माधव राव सिंधियां और जसवंत राव होलकर जैसे प्रतिभाशाली नेतृत्व था लेकिन उनके साथ प्राय: द्वितीय पंक्ति के पप्रशिक्षित कर्मियों का अभाव रहा। सबसे बुरी बात थी की, भारतीय नेतृत्व एक-दुसरे के खिलाफ युद्धरत रहते थे, जिस प्रकार वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते थे। भारत की एकता एवं अखंडता के लिए संगर्ष या युद्ध भावना की अभिप्रेरणा उनमे नहीं थी।

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मजबूत वित्तीय पूर्तिकर या वित्तीय सुदृढ़ता: अँगरेज़ वित्तीय रूप से मजबूत थे क्योंकी कंपनी ने कभी भी व्यापार एवं वाणिज्य के कोण को धूमिल नहीं होने दिया। कंपनी की आय इतनी पर्याप्त थी की उसने न केवल अपने अंशधारियों को अच्छा लाभांश प्रदान किया अपितु भारत में अंग्रेजों द्वारा युद्ध को भी वित्तीय सहायता दी।

राष्ट्रवादी अभियान: इन सबसे ऊपर, आर्थिक रूप से अग्रसर ब्रिटिश लोग भौतिक उन्नयन में विश्वास करते थे और अपने राष्ट्रीय गौरव पर अभियान करते थे। जबकि कमज़ोर-विभाजित-स्वार्थी भारतीय अज्ञानता एवं धार्मिक पिछड़ेपण में डूबे हुए थे और उनमे अखंड राजनीती राष्ट्रवाद की भावना का अभाव था।  

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