कोचिंग क्लासेज: एक ट्रेंड या जरूरत

Jan 16, 2020, 12:59 IST

भारत एक विकासशील देश है और पिछले कुछ दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर बदलाव आये हैं. यहां कई विदेशी कंपनियों ने अपने ऑफिस खोल लिए हैं और ये कंपनियां कई लोगों को जॉब और अच्छी सैलरी दे रही हैं.

Coaching Classes: A trend or a necessity
Coaching Classes: A trend or a necessity

भारत एक विकासशील देश है और पिछले कुछ दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर बदलाव आये हैं. यहां कई विदेशी कंपनियों ने अपने ऑफिस खोल लिए हैं और ये कंपनियां कई लोगों को जॉब और अच्छी सैलरी दे रही हैं. लेकिन, इन कंपनियों में जॉब प्राप्त करना कोई बच्चों का खेल नहीं है. इसके लिए स्टूडेंट्स को किसी मशहूर इंस्टीट्यूट से बहुत बढ़िया मार्क्स से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करनी होती है जिसके लिए उन्हें बहुत ज्यादा कॉम्पिटीटिव माहौल का सामना करना पड़ता है. हालांकि, हाइली स्किल्ड टीचर्स और अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण एजुकेशन की क्वालिटी पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है. स्टूडेंट्स से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वे सभी बाधाओं को दूर करते हुए विभिन्न एंट्रेंस एग्जाम्स में शानदार सफलता प्राप्त करेंगे. स्टूडेंट्स को प्राप्त ट्रेनिंग और जो वे प्राप्त करना चाहते हैं, उसमें काफी गैप होता है.

पिछले दशक में या उससे कुछ पहले से कोचिंग क्लासेज के सेंटर्स इस गैप को भरने के लिए काफी जबरदस्त प्रयास कर रहे हैं. ये कोचिंग सेंटर्स एडवर्टाइजमेंट जारी करते हैं और उस एडवर्टाइजमेंट में स्टूडेंट्स को सफलता दिलवाने की गारंटी देती हैं. लेकिन, हमें इस बात का पहले ही ठीक से पता लगाना चाहिए कि क्या वास्तव में ये क्लासेज इतनी अधिक महत्वपूर्ण हैं, जितना ये कोचिंग इंस्टीट्यूट्स दावा करते हैं?

आजकल, स्टूडेंट्स लगातार बड़ी संख्या में ये कोचिंग क्लासेज ज्वाइन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सफलता प्राप्त करने के लिए केवल यही एक तरीका है. आइये हम इस कोचिंग क्लासेज की दुनिया की पड़ताल करते हैं और पता लगाते हैं कि क्या वास्तव में ये क्लासेज अत्यंत जरुरी हैं?..... या फिर, ये मात्र एक ट्रेंड ही हैं. इसके लिए, आइये कोचिंग क्लास अटेंड करने के पक्ष और विपक्ष में विचार-विमर्श करते हैं:

कोचिंग क्लासेज अटेंड करने के फायदे :

कोचिंग क्लासेज स्टूडेंट्स को रोजाना मॉक टेस्ट्स, सब्जेक्ट वाइज क्वेश्चन पेपर्स और प्रैक्टिस मटीरियल उपलब्ध करवाती हैं. इससे स्टूडेंट्स को विभिन्न कॉन्सेप्ट्स को समझने और अप्लाई करने की प्रैक्टिस करने में मदद मिलती है. प्रैक्टिस क्वेश्चन्स हरेक स्टूडेंट्स के लिए समान होते हैं जिससे उनकी स्टडी संबंधी पर्सनल नीड्स पूरी नहीं हो पाती हैं.  

स्टूडेंट्स के पास कोचिंग क्लासेज अटेंड करने के कुछ कॉमन रीज़न्स होते हैं. सबसे कॉमन रीज़न सुरक्षा का अहसास होना है. इन क्लासेज को अटेंड करने पर स्टूडेंट्स को महसूस होता है कि यहां के टीचर उनके स्कूल के टीचर्स से ज्यादा कुशल हैं क्योंकि वे काफी ज्यादा फीस लेते हैं. स्टूडेंट्स को महसूस होता है कि उनके टीचिंग मेथड ज्यादा बेहतर हैं और कोचिंग क्लासेज अटेंड करके उन्हें ज्यादा इंडिविजुअल अटेंशन मिलेगी. इसके अलावा, कई बार स्टूडेंट्स अपने अन्य क्लासमेट्स की देखा-देखी भी ये क्लासेज ज्वाइन करते हैं क्योंकि उन्हें यह लगता है कि अन्य सभी स्टूडेंट्स कोचिंग क्लासेज अटेंड कर रहे हैं तो फिर, वे क्यों पीछे रहें?

स्टूडेंट्स यह नहीं समझ पाते हैं कि ये कोचिंग क्लासेज वास्तव में स्कूल की एक असफल प्रतिलिपि या नकल है जिसके माहौल में काफी सरगर्मी रहती है. असल में, कोचिंग क्लासेज किसी ट्रेडिशनल स्कूल की कमियों को दूर नहीं कर पाती हैं. अब, नीचे कुछ कमियों की चर्चा करते हैं:

कोचिंग क्लासेज अटेंड करने के नुकसान:

लर्निंग में पर्सनलाइजेशन की कमी

अधिकांश भारतीय स्कूलों में स्टूडेंट्स और टीचर का अनुपात काफी बड़ा होता है. अधिकांश कोचिंग क्लासेज में भी यही स्थिति है. लगातार बढ़ती हुई आवश्यकता के कारण, अधिकांश क्लासेज के हरेक बैच में 100-150 स्टूडेंट्स होते हैं. इस कारण, प्रोफेसर्स ‘सभी के लिए फिट, एक साइज़’ वाली अप्रोच अपनाते है और एवरेज लर्नर की स्पीड से पढ़ाते हैं. कुछ स्टूडेंट्स कॉन्सेप्ट्स को तुरंत समझ लेते हैं और फिर टीचिंग की धीमी स्पीड के कारण उन स्टूडेंट्स का इंटरेस्ट खत्म हो जाता है. अन्य कुछ स्टूडेंट्स को बेसिक कॉन्सेप्ट्स  को समझने के लिए भी काफी प्रयास करना पड़ता है. यह स्पष्ट है कि इन कोचिंग क्लासेज का माहौल भी स्कूल के माहौल के समान ही होता है. खास बात तो यह है कि स्कूल की पढ़ाई की इन कोचिंग क्लासेज में केवल रिवीजन ही होती है. इससे स्टूडेंट्स को कुछ खास मदद नहीं मिलती है क्योंकि स्टूडेंट्स के लिए ये लेक्चर्स दुबारा सुनना खास जरुरी नहीं होता है. स्टूडेंट्स को इन कोचिंग क्लासेज में मदद, गाइडेंस और नॉलेज की पर्सनल लेवल पर जरूरत होती है जो उन्हें वहां अक्सर नहीं मिल पाती है.   

गैर-जरुरी स्ट्रेस

आइए इस फैक्ट को ध्यान से समझें और इस सच्चाई का सामना करें कि  – स्कूल में कई घंटे पढ़ने के बाद, इन कोचिंग क्लासेज में एक्स्ट्रा घंटे पढ़ना कोई कम हिम्मत की बात नहीं है. कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि अपने वेस्टर्न सहपाठियों की तुलना में भारतीय स्टूडेंट्स स्कूल में ज्यादा घंटे बिताते हैं. इतने अधिक समय तक पढ़ते रहने के बावजूद भी, स्टूडेंट्स को आने वाले टेस्ट्स की तैयारी करने और अपनी असाइनमेंट खत्म करने के लिए भी काफी ज्यादा प्रेशर में अपनी स्टडीज करनी पड़ती हैं.  

हमें यह समझना चाहिए कि इतने ज्यादा कॉम्पिटीशन के कारण ही स्टूडेंट्स को स्कूल के अलावा भी मदद की जरूरत पड़ती है. हालांकि, यह कहीं ज्यादा बेहतर होता अगर स्टूडेंट्स को अपनी बॉडी-क्लॉक को अपनी कोचिंग क्लासेज के मुताबिक एडजस्ट करने के बजाय अपने स्टडी टाइम को चुनने की आजादी मिली होती. अपने स्कूल और कोचिंग क्लासेज के बीच चक्कर काटते रहने के कारण वे अपनी स्टडीज में अच्छा परफॉर्म नहीं कर सकते हैं. वे बहुत अधिक तनाव और चिंता महसूस करने लगते हैं. इसके अलावा, कई स्टूडेंट्स स्कूल और कोचिंग क्लासेज के साथ अपने पसंदीदा लर्निंग आवर्स एडजस्ट नहीं कर पाते हैं.  

पेरेंट्स पर एक्स्ट्रा खर्च का भार

जेईई, एनईईटी, सीपीटी और सीएलएटी जैसे बहुत अधिक कॉम्पिटीटिव एग्जाम्स के लिए कोचिंग क्लासेज अक्सर बहुत महंगी होती हैं. इसके साथ ही महंगी रेफेरेंस बुक्स और डेली ट्रेवल कॉस्ट्स स्टूडेंट्स के पेरेंट्स पर खर्च का काफी ज्यादा भार डाल देती हैं. अक्सर फिर पेरेंट्स को लोन लेना पड़ता है और यहां तक कि अपना मकान भी गिरवी रखना पड़ता है ताकि उनके बच्चों को बेहतरीन शिक्षा मिल सके. 

स्टूडेंट्स के डाउट्स और क्वेरीज का समाधान नहीं हो पाता

स्टूडेंट्स के बहुत बड़े बैच और कोचिंग आवर्स सीमित होने के कारण कोचिंग क्लासेज में टीचर हमेशा स्टूडेंट्स के डाउट्स सॉल्व नहीं कर पाते हैं. यह बहुत से स्कूलों की प्रमुख समस्या है जो अधिकांश कोचिंग सेंटर्स में भी जस-की-तस बनी रहती है. ऐसे में, स्टूडेंट्स को केवल अपने पीअर्स और रेफेरेंस बुक्स से ही मदद मिलने का भरोसा रहता है.

जियोग्राफिकल बैरियर्स

बेस्ट कोचिंग सेंटर्स मेट्रो सिटीज या कोटा जैसे कुछ छोटे शहरों में ही मौजूद हैं. टियर II और टियर III सिटीज के स्टूडेंट्स को एजुकेशन की एवरेज क्वालिटी के लिए भी काफी कीमत चुकानी पड़ती है. अधिकांश स्टूडेंट्स को अक्सर, अच्छी शिक्षा पाने की उम्मीद में काफी छोटी आयु में अपने परिवार से दूर इन शहरों में रहना पड़ता है. इसके अलावा, बहुत से स्टूडेंट्स के परिवार नई जगह का खर्चा भी नहीं उठा सकते हैं.

सारांश

यह तो जाहिर-सी बात है कि स्टूडेंट्स को अपने स्कूल के क्लासरूम के अलावा भी अपनी स्टडीज में मदद चाहिए. स्टूडेंट्स को उक्त टॉपिक के पक्ष में उल्लिखित सब चीजें चाहिए. किसी भी कॉम्पिटीटिव एग्जाम में सफल होने के लिए स्टूडेंट्स को उपयुक्त गाइडेंस और प्रैक्टिस की जरूरत होती है. हालांकि, स्टूडेंट्स कोचिंग क्लासेज की वजह से होने वाले एक्स्ट्रा स्ट्रेस और एक्स्ट्रा खर्च से जितना अधिक बच सकें, उनके लिए उतना ही अच्छा रहता है. स्टूडेंट्स के लिए पर्सनलाइज्ड और टेलर्ड स्टडीज फायदेमंद होती हैं जो उनकी स्टडी संबंधी सभी जरूरतों को अच्छी तरह पूरा कर सके. स्टूडेंट्स को कुछ ऐसी कोचिंग मिलनी चाहिए जिसमें वे अपनी मर्जी के अनुसार धीमी या तेज़ गति से अपनी स्टडीज कर सकें. एक ऐसी सुविधा जिसमें स्टूडेंट्स अपनी सुविधा के अनुसार समय और जगह चुन सकें.....फिर चाहे वह स्टूडेंट्स का घर हो या लाइब्रेरी का शांत माहौल. उन्हें ऐसा लर्निंग मटीरियल, मॉक टेस्ट्स और गाइडेंस चाहिए जो केवल मेट्रो सिटीज तक ही सीमित न होकर किसी भी टाउन या विलेज में उपलब्ध हो. स्टूडेंट्स को ऐसी मदद चाहिए जो उनके पेरेंट्स को खर्च और क़र्ज़ के बोझ तले न दबा दे बल्कि, स्टूडेंट्स के डाउट्स दूर करने के लिए 24x7 उपलब्ध रहे. लेकिन, ये सब केवल एजु-टेक के जरिये ही संभव है.

लेखक के बारे में:

मनीष कुमार ने वर्ष 2006 में आईआईटी, बॉम्बे से मेटलर्जिकल एंड मेटीरियल साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की. उसके बाद इन्होंने जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, यूएसए से मेटीरियल्स साइंस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की और फिर इंडियन स्कूल फाइनेंस कंपनी ज्वाइन कर ली, जहां वे बिजनेस स्ट्रेटेजीज एंड ग्रोथ के लिए जिम्मेदार कोर टीम के सदस्य थे. वर्ष 2013 में, इन्होंने एसईईडी स्कूल्स की सह-स्थापना की. ये स्कूल्स  भारत में कम लागत की के-12 एजुकेशन की क्वालिटी में सुधार लाने पर अपना फोकस रखते हैं ताकि क्वालिटी एजुकेशन सभी को मुहैया करवाई जा सके. वर्तमान में ये टॉपर.कॉम के प्रोडक्ट – लर्निंग एंड पेडागॉजी विभाग में वाईस प्रेसिडेंट हैं.

Manish Kumar
Manish Kumar

Assistant Content Manager

A Journalist and content professional with 13+ years of experience in Education and Career Development domain in digital and print media. He has previously worked with All India Radio (External Service Division), State Times and Newstrackindia.com. A Science Graduate (Hons in Physics) with PGJMC in Journalism and Mass Communication. At Jagranjosh, he used to create content related to Education and Career sections including Notifications/News/Current Affairs etc. He can be reached at manish.kumarcnt@jagrannewmedia.com.

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