UP Board Class 10 Science Notes :activities of life or processes of life Part-III

Aug 21, 2017, 18:13 IST

Here we are providing UP Board class 10th Science notes on chapter 18(activities of life or processes of life) 3rd part. We understand the need and importance of revision notes for students. Hence Jagran josh is come up with the all-inclusive revision notes which have been prepared by our expert faculty.

Get UP Board class 10th Science chapter 18(activities of life or processes of life) 3rd part.It is often witnessed that students don’t organize their revision notes while going through the subjects and because of this they tend to miss out various crucial points. The main topic cover in this article is given below :

1. भोज्य पदार्थों का अवशोषण

2. श्वसन

3. वाह्य श्वसन

4. आन्तरिक श्वसन

5. जीवधारियों में पर्यावरण से गैसीय विनिमय

6. हीमोग्लोबिन का महत्त्व

7. श्वसन अंग की विशेषताएँ

8. श्वसन तथा दहन में अन्तर

भोज्य पदार्थों का अवशोषण (Absorption of Digested food) :

पाचन के बाद विलेय पोषक तत्वों को कोशिकाओं तक पहुंचाने का कार्य किया जाता है। एक कोशिकीय जन्तु अमीबा में खाद्य रिक्तिका से पचे हुए पोषक तत्व जीवद्रव्य में ही अवशोषित हो जाते है विकास के साथ - साथ कोशिकाओं की संख्या बढ़ने से प्रत्येक कोशिका का सम्पर्क भोजन से रहना असम्भव हो जाता है: अत: भोजन को कुछ कोशिकाएँ अवशोषित करती है और अन्य कोशिकाओं तक पहुंचाती है, जैसे - स्पंज (sponges) में। कशेरुकियों में तथा कुछ उच्च श्रेणी के अकशेरुकियों में पाचन के बाद, विलेय भोज्य पदार्थ रुधिर के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिए जाते हैं।

कशेरुकी प्राणियों के आमाशय की श्लेष्म कला द्वारा लवण आदि वह अवशोषण होता है, लेकिन  अधिकारी पचे हुए भोजन का अवशोषण क्षुद्रात्र (ileum) में ही होता है। क्षुद्रात्र की अवशोषण सतह  रसांकृर (villi) तथा सुक्ष्मांकर (microvilli) के कारण बढ़ जाती है। रसाकुरों में रक्त केशिकाएँ तथा लसीका केशिकाएँ पाई जाती हैं। रक्त केशिकाएँ विसरण द्धारा ऐमीनो अम्लों, शर्कराओँ, लवणों, विटामिन्स एवं जल आदि का अवशोषण करती है।

वसाओं के पाचन के फलस्वरूप प्राप्त गिल्सराल व वसीय अम्लों का अवशोषण लसीका केशिकाओं द्वारा होता है। अवशोशण के पश्चात् वसीय अम्ल तथा गिलसरॉल के मिलने से वसा बिन्दुओं (fat globules) का निर्माण होता है। लसीका केशिकाएँ परस्पर मिलकर लसीका वाहिनी बनाती हैं। लसीका वाहिनियाँ रक्त वाहिनियों से मिलकर वसा बिन्दुओं को रक्त में पहुँचा देती हैं।

क्षुद्रात्र एवं आहार नाल के विभिन्न भागों से रक्त यकृत निवाहिका शिरा (Hepatic portal vein) द्वारा यकृत पहुंचता है। अत: पचा हुआ भोजन अवशोषण के पश्चात् यकृत में पहुंचा दिया जाता है। यकृत शरीर की आवश्यकतानुसार भोज्य पदार्थों को रक्त में मुक्त करता है। आवश्यकता से अधिक शर्करा को गलाइकोजन (glycogen) में बदलकर संचित करता है। आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों को अमोनिया तथा पाइरुविक अम्ल में तोड़कर अमोनिया को यूरिया में बदल देता है। पाहरुविकं अम्ल का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में हो जाता है। यकृत से रक्त, लसीका तथा ऊतक तरल द्वारा भोज्य पदार्थों का शरीर में वितरण होता है।

Absorption of Digested food

पचे हुए भोज्य पदार्थों के कोशिका के जीवद्रव्य में आत्मसात (विलीन) होने की क्रिया को स्वागीकरण (assimilation) कहते है। स्वागीकृत पोषक तत्त्वों का उपयोग अलग- अलग हो सकता है, जैसे ग्लूकोस तथा वसा का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। प्रोटीन्स (ऐमीनो अम्लों) का उपयोग मरम्मत तथा जीवद्रव्य निर्माण में किया जाता है। ऐमीनो अम्लों से एन्जाइम्स बनते है। कुछ पोषक तत्त्व हॉमोंन्स निर्माण के काम आते है। जीवद्रव्य में स्वांगीकृत पदार्थों को मेटाबोलाइटस (metabolites) कहते हैं। सरल पोषक तत्वों से जटिल जीवद्रव्य का संश्लेषण होता है जो मरम्मत तथा वृद्धि के काम आता है। जल कोशिकाओं में मुख्यत: घोलक (solvent) का काम करता है। जल जैविक क्रियाओं के लिए अति आवश्यक है, जल के अभाव में कोई भी जैविक क्रिया सप्पन्न नहीं हो सकती। आवश्यकता से अधिक जल मूत्र के रूप में निष्कासित कर दिया जाता है।

UP Board Class 10 Science Notes :activities of life or processes of life Part-I

श्वसन (Respiration) :

जीवधारियों को जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा भोज्य पदार्थों के आँक्सीकरण से प्राप्त होती है। भोज्य पदार्था के आँक्सीकरण हेतु आक्सीजन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक जीवधारी श्वसन के द्वारा भोज्य पदार्थों का आँक्सीकरण करके ऊर्जा प्राप्त करता है। श्वसन क्रिया में बनने वाली कार्बन डाइआँवसाइड को बाहऱ निकालने और आक्सीजन को उपलब्ध कराने के लिए प्राणियों में आवश्यक श्वसन अंग होते है जो परस्पर मिलकर श्वसन तन्त्र बनाते हैं।

श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली उन सभी एन्जाइमी अभिक्रियाओँ को कहते है जिसमें आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों का आँक्सीकरण होता है, ऊर्जा तथा कार्बन डाइआँक्साइड मुक्त होती है। मुक्त उर्जा ATP में संचित होकर जैविक क्रियाओं के काम आती है।

श्वसन को दो प्रमुख अवस्थाओं में बाँट सकते है-

1 बाह्य श्वसन तथा

2 आन्तरिक श्वसना

1. वाह्य श्वसन (External Respiration) - इसके अन्तर्गत श्वासोच्छवास, गैसीय विनिमय तथा आँक्सीजन एवं कार्बन डाइआकसाइड परिवहन आता है। विभिन्न जीवधारियों में वातावरण से वायु ग्रहण करने के लिए भिन्न भिन्न युक्तियाँ पाई जाती हैं।

2. आन्तरिक श्वसन (Internal Respiration) - जीवित कोशिका में कार्बनिक पदार्था के जैव रासायनिक आँक्सीकरण को आन्तरिक श्वसन या श्वसन कहते हैं।

जीवधारियों में पर्यावरण से गैसीय विनिमय (Gaseous Exchange from Environment in Livings) :

1. पौधों में गैसीय विनिमय - श्रेणी के पादपों में शरीर सतह से तथा उच्च श्रेणी के पादपों में रंध्रों (stomata), वातरन्ध्र (lenticels) या उपत्वचा (cuticle) से होता है।

2. एककोशिकीय तथा सरल बहुकोशिकीय जन्तुओं में गैसीय विनिमय - अमीबा (Amoeba), स्पंज, हाइड्रा (hydra), प्लैनेरिया (Planaria) आदि प्राणियों में O2 तथा CO2 का विनिमय सामान्य विसरण द्वारा होता है।

3. केंचुआ तथा जोंक की देहभिति में रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है। रक्त केशिकाओं तथा पर्यावरण के मध्य O2 तथा CO2 का विनिमय विसरण द्वारा होता है।घुलकर विसरित होती है।

4. आथ्रोरपोडा संघ के स्थालीय सदस्यों में श्वासनाल (ट्रैकिया - trachea) तथा बुकलंग्स (book lungs) और जलीय सदस्यों मे क्लोम (gills) पाए जाते हैं।

5. जलीय कशेरुकियों जैसे मछलियों में गैसीय विनिमय क्लोमों द्वारा होता है। इनमें ग्रसनीय गिल दरारें (pharyngeal gill slite) होती हैं| कुछ उभयचरों (Amphibian) में गैसीय विनिमय फेफडों त्वचा तथा मुखगुहिका (buccal caviity) के द्वारा होता है। सरीसृप, पक्षियों व स्तनियों में गैसीय विनिमय केवल फेफडों (lungs) द्वारा ही होता है। फेफडों की वायु कूपिकाओं में रुधिर केशिकाओं का जाल बिछा होता है। वायु कूपिकाओं की वायु तथा रक्त केशिकाओं के रक्त के मध्य गैसीय विनिमय होता है।

हीमोग्लोबिन का महत्त्व (Importance of Haemoglobin):

केचुआ तथा कशेरुकी जन्तुओं के रुधिर में लौहयुक्त एक विशेष यौगिक हीमोग्लोबिन पाया जाता है। इस पदार्थ का उपयोग आक्सीजन के सक्रिय तथा अधिक भात्रा में परिसंचरण के लिए किया जाता है।

रुधिर में उपस्थित हीमोग्लोबिन आँवसीजन के परिवहन के लिए अत्यन्त लाभकारी क्या प्रभावी होता है। सामान्य ताप पर एक लीटर जल में केवल 65 मिली आँक्सीजन घुल पाती है। केंचुए के हीमोग्लोबिनयुयुक्त रुधिर के एक लीटर में 65 मिली तथा मनुष्य के एक लीटर रुधिर में 250 मिली आक्सीजन धारण करने की शक्ति होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि आंक्सीजन धारण करने की यह शक्ति मनुष्य के रुधिर में जल को अपेक्षा 50 गुना अधिक होती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जन्तुओं मे  हीमोग्लोबिन का विकास प्रभावी गैस परिवहन हेतु हुआ है।

श्वसन अंग की विशेषताएँ( Characteristics of Respiratory Organse) :

(1) श्वसन अंग का सतह-धरातल अधिक होना चाहिए।

(2) श्वसन सतह में रुधिर केशिकाओं का जाल जितना अधिक फैला होगा, उतना ही वायु – विनिमय सुचारु रूप से होगा।

(3) श्वसन सतह पतली तथा नम होनी चाहिए, क्योंकि गैसों का आवागमन केवल घुलित अवस्था में होता है।

(4) श्वसन अंरा तक 02 तथा CO2 को लाने व ले जाने का उचित प्रबंध होना चाहिए।

UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-VI

UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-VII

श्वसन तथा दहन में अन्तर (Differences between Respiration and Combustion) :

क्रoसंo

श्वसन (Respiration)

दहन (Combustion)

1.

 

2.

 

 

 

3.

यह स्रामान्य ताप पर होने वाली नियन्त्रित जैव - रासायनिक आक्सीकरण क्रिया है।

इसमें अधिकारी विमोचित ऊर्जा को गतिज ऊर्जा के रूप में, कई चरणों में ATP में

अनुबन्धित किया जाता है।

यह क्रिया एन्जाइम्स की सहायता से होती है।

यह उच्च ताप पर होने वाली अनियंत्रित आक्सीकरण की क्रिया है।

इसमें सम्पूर्ण विमोचित ऊर्जा प्रकाश एवं ऊष्मा में बदलकर एक साथ मुक्त हो जाती है।

 

दहन में एन्जाइम्स की आवश्यकता नहीं होती।

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