भारत-चीन सीमा पर बसे उत्तराखंड के सीमांत गांव 'माणा' को सीमा सड़क संगठन (BRO) ने 'भारत के प्रथम गांव' के रूप में घोषित किया है. बीआरओ ने इस गांव के प्रवेश द्वारा पर 'भारत के प्रथम गांव' का साइन बोर्ड लगा दिया है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है और लिखा की अब माणा देश का आखिरी नहीं, प्रथम गांव के रूप में जाना जाएगा.
अब 'माणा' देश का आख़िरी नहीं बल्कि प्रथम गाँव के रूप में जाना जाएगा।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) April 24, 2023
बीते वर्ष 21 अक्टूबर 2022 को माणा गांव से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने अपने भाषण में सीमांत गांव माणा को "देश के प्रथम गांव" के रूप में संबोधित किया था। हमारी सरकार सीमांत क्षेत्रों के… pic.twitter.com/tDv1e8oqnk
माणा कैसे बना भारत का पहला गांव?
उत्तराखंड के चमोली जिले का माणा गांव पहले भारत के आखिरी गांव के रूप में जाना जाता था. लेकिन अब इसे एक नई पहचान मिल गयी है. बीआरओ ने इसे देश के पहले गांव के रूप में मान्यता दे दी है.
21 अक्टूबर 2022 को पीएम मोदी ने अपने माणा दौरे के दौरान कहा था कि सीमाओं पर बसा हर गांव देश का पहला गांव है.
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत किया जा रहा विकसित:
भारत सरकार ने 4800 करोड़ रुपये के केंद्रीय घटकों के साथ 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' (VVP) को मंजूरी दी है. जिसमें बॉर्डर एरिया में सड़कों के विकास के लिए 2500 करोड़ रुपये भी शामिल है. जिसे वित्तीय वर्ष 2022-23 से 2025-26 की अवधि के लिए मंजूर किया गया है.
यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसके तहत अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्यों और लद्दाख के उत्तरी सीमा से सटे 19 जिलों के 46 ब्लॉकों में 2967 गांवों को चिन्हित किया गया है. इस तरह की योजनाओं का मुख्य उद्देश्य इन क्षेत्रों से होने वाले पलायन को भी रोकना है.
क्यों प्रसिद्ध है माणा गांव?
हिमालय की वादियों के बसा माणा गांव कई उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें ऊनी वस्त्र शॉल, टोपी, मफलर, पंखी (भेड़ की ऊन से बना एक पतला कंबल), कालीन आदि प्रमुख है.
यहां मिलने वाली जड़ी-बूटियां भी काफी मशहूर है. जो विभिन्न प्रकार के मानव रोगों में लाभदायक होती है. साथ ही यहां की जड़ी-बूटियां मानव स्वास्थ्य के लिए भी लाभकर होती है.
राज्य सरकार ने इस गांव के विकास के लिए ग्राम पंचायतों के सहयोग से जीवंत ग्राम कार्य योजना भी तैयार की है. जिसके तहत इन क्षेत्रों का विकास किया जा रहा है.
राज्य सरकार ने 'एक गांव एक उत्पाद योजना' के तहत यहां ऊनी वस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है, जो इसे एक नई पहचान दे रहा है. साथ ही यह योजना इन क्षेत्रों से होने वाले पलायन को भी रोकने में मदद कर रही है.
3219 मीटर की ऊंचाई पर बसा है माणा गांव:
भारत-चीन सीमा पर बसा यह गांव चीन की सीमा से महज 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. माणा की समुद्र तल से ऊंचाई 3219 मीटर है. इस गांव का इतिहास काफी पुराना है. प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा यह गांव सरस्वती नदी के तट पर स्थित है.
माणा में कौन से है टूरिस्ट स्पॉट?
माणा चारों तरफ से हिमालय की पहाड़ियों से घिरा हुआ है. वसुधरा झरना, नीलकंठ चोटी, तप्त कुंड, व्यास गुफ़ा, भीम पुल जैसे टूरिस्ट प्लेस है जिनको आप विजिट कर सकते है. हरिद्वार रेलवे स्टेशन इसके पास का नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, जहां से आप आसानी से भारत के पहले गांव की यात्रा कर सकते है.
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