केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 23 मई 2018 को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) अध्यादेश में संशोधन की घोषणा की. इस अध्यादेश के विधेयक में परिवर्तित होने पर आम लोगों को अधिकार एवं बड़ी राहत मिल सकेगी.
इस कानून के तहत अभी तक केवल वित्तीय संस्थाओं जैसे कि बैंक और अन्य उधारदाताओं को ही ये अधिकार था कि वह अपना बकाया वापस ले सकें लेकिन आम लोगों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं था.
अध्यादेश में संशोधन के मुख्य तथ्य
• आईबीसी कानून में ताजा संशोधन का प्रस्ताव इसमें नई धारा 29ए को जोड़े जाने के एक माह बाद आया है. पिछले वर्ष नवंबर में आईबीसी संहिता में संभावित बोलीदाताओं की अयोग्यता को लेकर नये मानदंड जोड़े गये थे.
• कानून में ताजा संशोधन सरकार द्वारा इस संबंध में सिफारिशें देने के लिये गठित 14 सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर आधारित हैं.
• दिवाला कानून पर गठित समिति ने पिछले महीने ही कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय को दी गई अपनी सिफारिश में कहा है कि रियल एस्टेट डेवलपर की परियोजनाओं में मकान खरीदने वाले ग्राहकों को भी बैंकों की तरह वित्तीय कर्जदाता की श्रेणी में माना जाना चाहिए.
• समिति ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को भी आईबीसी कानून के तहत राहत पहुंचाने का सुझाव दिया है.
क्यों महत्वपूर्ण |
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पृष्ठभूमि
इससे पहले लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) में संशोधन का विधेयक परित हुआ था. इसके तहत यह प्रावधान किया गया था कि जान बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले बकायेदार खुद की संपत्ति की बोली नहीं लगा सकते. आईबीसी कार्यान्वयन कॉरपोरेट मामलों द्वारा ही किया जाता है जिसे 2016 दिसंबर में लागू किया गया था, जो समयबद्ध तरीके से दिवालिया समाधान प्रक्रिया प्रदान करती है.
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