केंद्र सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर सोशियली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास (एनएसईबीसी/ NSEBC) आयोग गठित करने का निर्णय लिया है. नवगठित आयोग पिछड़ा वर्ग आयोग का स्थान लेगा.
इस नवगठित आयोग को कॉन्स्टीट्यूशनल बाडी का दर्जा प्रदान किया जाएगा. नवगठित आयोग के अनुसार ओबीसी में नई जाति जोड़ने हेतु संसद की मंजूरी आवश्यक होगी. मंत्रिमंडल ने पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1993 को भी निरस्त कर दिया और उसके तहत गठित संस्था को भंग कर दिया. इसके लिए संविधान में भी संशोधन किया जाएगा.
मुख्य तथ्य-
अभी तक नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास (एनसीबीसी/ NCBC) को कानूनी दर्जा तो था किन्तु संवैधानिक दर्जा प्रदान नहीं किया गया.
एनएसईबीसी/ (NSEBC) को संवैधानिक दर्जा भी प्रदान किया जाएगा. इस आशय का विधेयक संसद में पेश किया जाएगा.
आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य कार्यरत होंगे.
नई प्रक्रिया के तहत आयोग किसी जाति को पिछड़े वर्ग में जोड़ने और हटाने को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजना होगा.
केंद्र सरकार के अनुसार सोशल और एजुकेशनल बेस पर पिछड़ों की नई परिभाषा गठित की जाएगी.
पिछड़ा आरक्षण नीति के बारे में-
भारतीय संविधान के पैराग्राफ 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक (सोशियली और एजुकेशनली) रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने को कहा गया है.
इसमें यह भी प्रमाणित करना होगा कि सम्बंधित व्यक्ति दूसरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं.
पूर्व उनके साथ अन्याय हुआ है, यह मानते हुए उसकी भरपाई के तौर पर, आरक्षण दिया जा सकता है.
वर्तमान प्रक्रिया-
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास राज्य में रहने वाले अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति का ब्यौरा रहता है.
अदर बैकवर्ड क्लास (ओबीसी) कमीशन इसी आधार पर अपनी सिफारिशें देता है.
पूरे देश के मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग अपनी सिफारिशें करता है.
राज्य और केंद्र के आरक्षण में अंतर-
देश में कुछ जातियों को केंद्र में या किसी राज्य में आरक्षण प्रदान किया गया है तो केंद्र या किसी राज्य में उस जाति को नहीं आरक्षण प्रदान नहीं किया गया.
मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि अलग-अलग राज्या में हालात अलग-अलग हो सकते हैं.
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