वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि लगातार बढ़ रहे वैश्विक तापमान और शुष्क मौसम की स्थिति में वृद्धि से कोकोआ बीज के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है. इसके चलते वर्ष 2050 तक चॉकलेट के विलुप्त होने की स्थिति बन सकती है. विश्वभर में चॉकलेट खाने वालों की कमी नहीं है. बच्चा हो या बड़ा सभी को चॉकलेट अच्छा लगता है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, चॉकलेट के विलुप्त होने का एक कारण कोकोआ की खेती पुराने तरीके से होना भी है. किसानों के पास इतने साधन और आर्थिक सहायता नहीं है कि वे नए तरीके से कोकोआ की खेती कर पाएं. जिसके कारण फसल समय पर तैयार नहीं हो पाती. कोकोआ फसल को बचाने का एक ही तरीका है कि आने वाले सालों में खूब बारिश हो.
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अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य:
• कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोकोआ चॉकलेट के उत्पादन के लिए लगभग 20 डिग्री से कम तापमान होना चाहिए लेकिन तेजी से बढ़ते तापमान के कारण चॉकलेट के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
• ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 30 से 40 साल में तापमान 2.1 डिग्री तक बढ़ जाएगा, इसका सीधा असर चॉकलेट के पौधें पर पड़ेगा.
• कोकोआ बीन्स का उत्पादन करने वाला कोको का पेड़, केवल वर्षा वन की एक छोटी पट्टी के भीतर विकसित हो सकता है जो भूमध्य रेखा के लगभग 20 डिग्री उत्तर और दक्षिण में स्थित है, जहां तापमान, बारिश और नमी सभी वर्ष भर अपेक्षाकृत स्थिर रहते हैं.
• दुनिया में लगभग 4 से 5 करोड़ लोग चॉकलेट तैयार करने के व्यापार से जुड़े हुए हैं. यानी ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने करोड़ों लोगों की नौकरी को ख़तरे में डाल दिया है.
पृष्ठभूमि:
कोकोआ नामक एक फल के बीज से चॉकलेट बनती है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु में आ रहे बदलाव की वजह से कोकोआ की फसल बर्बाद हो रही है. बढ़ते तापमान के कारण कोकोआ के पेड़ों का फलना-फूलना कम हो गया है. जिसका असर उसके फल पर हो रहा है.
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