वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हमारे ग्रह के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई तो पृथ्वी का एक चौथाई हिस्सा काफी हद तक सूख जाएगा. भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक सहित, वैज्ञानिकों के एक समूह ने अपने अध्ययन में कहा है कि ऐसा होने की स्थिति में पृथ्वी पर सूखा और जंगलों में आगे लगने की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
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वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा संकट बन गई है. विश्वभर में बढ़ती वाहनों और फैक्ट्रियों की संख्या और बायोमास तथा कचरा जलाने से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने विश्व को उस मुहाने पर ला खड़ा किया है, जहां से धरती सूखे की ओर बढ़ रही है.
मुख्य बिंदु:
• हालांकि, अगर वैश्विक ऊष्मन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक लिया गया तो वह धरती के कुछ हिस्सों में होने वाले ऐसे बदलावों को रोक सकेगा.
• ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट ऐंगलिया और चीन के सदर्न यूनिवर्सिटी आफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जलवायु परिवर्तन से जुडे 27 मॉडलों का अध्ययन किया है.
• अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने औद्योगिक क्रांति के समय के मुकाबले वैश्विक ऊष्मन में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर जो जगह सूखे हो जाएंगे, उनकी पहचान की है.
• उन्होंने इसमें शुष्कता को मापा है. शुष्कता जमीन के सतह को वर्षा से मिलने वाले पानी और जलवाष्प बनने के दर के अनुपात के आधार पर मापा जाता है.
• शोधकर्ताओं के अनुसार, 20वीं शताब्दी के दौरान भूमध्य सागर, दक्षिणी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर सूखा गंभीर रूप से बढ़ा है, जबकि मेक्सिको, ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के अर्ध शुष्क क्षेत्र तापमान बढ़ने के बंजर की मार झेल रहे हैं.
इससे बचने का विकल्प:
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस संकट से बचने के लिए सभी देशों को एकजुट होकर महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है. यदि इन प्रयासों से किसी तरह वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक लिया गया तो वह धरती के कुछ हिस्सों में होने वाले ऐसे बदलावों को रोक सकेगा.
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