भारतीय कॉफी की पांच किस्मों को जीआई टैग प्रदान किया गया

Mar 29, 2019, 18:37 IST

भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है.

GI Certification for five varieties of Indian coffee
GI Certification for five varieties of Indian coffee

केन्द्रीय वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय ने हाल ही में भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रदान किया है. इससे पहले भारत की एक अनोखी विशिष्‍ट कॉफी ‘मानसूनी मालाबार रोबस्टा कॉफी’ को जीआई प्रमाणन दिया गया था.

भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है. कॉफी गैर-परंपरागत क्षेत्रों जैसे कि आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा (17.2 प्रतिशत) और पूर्वोत्‍तर राज्‍यों (1.8 प्रतिशत) में भी उगायी जाती है.

ये किस्‍में निम्‍नलिखित हैं:

वायानाड रोबस्‍टा कॉफी: यह मुख्‍यत: वायानाड जिले में उगायी जाती है जो केरल के पूर्वी हिस्‍से में अवस्थित है.

कूर्ग अराबिका कॉफी: यह मुख्‍यत: कर्नाटक के कोडागू जिले में उगायी जाती है.

बाबाबुदनगिरीज अराबिका कॉफी: यह भारत में कॉफी के उद्गम स्‍थल में उगायी जाती है और यह क्षेत्र चिकमंगलूर जिले के मध्‍य क्षेत्र में अवस्थित है. इसे हाथ से चुना जाता है और प्राकृतिक किण्वन द्वारा संसाधित किया जाता है. इसमें चॉकलेट सहित विशिष्‍ट फ्लैवर होता है. कॉफी की यह किस्‍म सुहावना मौसम में तैयार होती है. यही कारण है कि इसमें विशेष स्‍वाद और खुशबू होती है.

चिकमगलूर अराबिका कॉफी: यह विशेष रूप से चिकमगलूर जिले में उगायी जाती है. यह दक्‍कन के पठार में अवस्थित है जो कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र से वास्‍ता रखता है.

अराकू वैली अराबिका कॉफी: इसे आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम जिले और ओडिशा क्षेत्र की पहाडि़यों से प्राप्‍त कॉफी के रूप में वर्णित किया जाता है. जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली अराकू कॉफी के लिए जैव अवधारणा अपनायी जाती है जिसके तहत जैविक खाद एवं हरित खाद का व्‍यापक उपयोग किया जाता है और जैव कीटनाशक प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीके अपनाये जाते हैं.

भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) के बारे में:

•    जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है.

•    ऐसा नाम उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है.

•    दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है.

•    जीआई उत्पाद दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं.

•    ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हमारे कलाकारों के पास बेहतरीन हुनर, विशेष कौशल और पारंपरिक पद्धतियों और विधियों का ज्ञान है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है और इसे सहेज कर रखने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है.

जीआई टैग के फायेदे:

जीआई प्रमाणन से जो विशिष्‍ट मान्‍यता एवं संरक्षण मिलता है उससे भारत के कॉफी उत्‍पादक विशिष्‍ट क्षेत्रों में उगायी जाने वाली कॉफी की अनूठी खूबियों को बनाये रखने में आवश्‍यक खर्च करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे. यही नहीं, इससे विश्‍व भर में भारतीय कॉफी की मौजूदगी भी बढ़ जायेगी और इसके साथ ही देश के कॉफी उत्‍पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी की अधिकतम कीमत प्राप्‍त करने में भी मदद मिलेगी.

भारत में कॉफी:

भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉफी की समूची खेती छाया वाले माहौल में की जाती है, इसे हाथ से चुना जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. विश्व में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में ही उगायी जाती हैं. इन्‍हें पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों के जनजातीय किसानों द्वारा उगाया जाता है, जो विश्‍व में जैव विविधता वाले दो प्रमुख स्‍थल है. भारतीय कॉफी विश्‍व बाजार में अत्‍यंत ऊंची कीमतों पर बेची जाती है. यूरोप में तो इसकी बिक्री प्रीमियम कॉफी के रूप में होती है.

Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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